For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम मुझको कितना भाती हो

कैसे मै बतलाऊँ तुमको,
तुम मुझको कितना भाती हो|

जैसे ये मनमोहक सावन,
जैसे पवन बसन्ती पावन,
जैसे उर मे बस जाती है
हरी-भरी यह धरा लुभावन,

तुम इस भाँति लुभा जाती हो,

कैसे मै बतलाऊँ तुमको
तुम मुझको कितना भाती हो|

जैसे वात मलयजी डोले,
जैसे पेंग भरे हिंडोले,.
जैसे ताँक-झाँक करने को ,.
चंदा घन-वातायन खोले..

मेरे हृदय समा जाती हो ,

कैसे मै बतलाऊँ तुमको
तुम मुझको कितना भाती हो|

ज्यों प्राची मे सुबह की लाली,
बौराये आमों की डाली ,
जैसे चलती उतान होकर ,
नदी कोई अल्हड़ मतवाली ,

ऐसे मुझ-पर छा जाती हो ,

कैसे मै बतलाऊँ तुमको
तुम मुझको कितना भाती हो|

ज्यों जाड़ो मे धूप निकलती ,
पर्वत से ज्यों बर्फ पिघलती,
जैसे पतझड़ के जाने पर ,
नई-नई कोंपलें निकलती,

अद्भुत, मन हर्षा जाती हो ,

कैसे मै बतलाऊँ तुमको
तुम मुझको कितना भाती हो|

आशीष यादव ( विद्रोही )
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 601

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on September 12, 2020 at 5:16am

आदरणीय श्री महेंद्र कुमार साहब, हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by आशीष यादव on September 12, 2020 at 5:15am

आदरणीय श्री बृजेश कुमार ब्रज जी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by Mahendra Kumar on December 18, 2016 at 10:55am
आदरणीय आशीष जी, इस बढ़िया प्रस्तुति के लिए आपको ढेरों बधाई। सादर।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 17, 2016 at 11:02pm
वाह बहुत ही सुन्दर कविता
Comment by आशीष यादव on December 17, 2016 at 10:21pm
श्री Samar kabeer जी, हौसलाआफजाई हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।
Comment by Samar kabeer on December 17, 2016 at 5:25pm
जनाब आशीष यादव(विद्रोही)जी आदाब,बहुत। सुंदर कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
6 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
6 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
6 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
7 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
12 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service