For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

असंतोष की छटपटाहटें समेटते

गहन वेदना की छायाओं में पले

टूटे विश्वास के घाव खुले-के-खुले

न सिले

सिले ओंठ उन घावों की आस्था की

तकलीफ़ भरी पुकार के

मिट्टी के ढेले के उड़ गए कण हों मानो

उन घावों के मैदान से तुम तक अब

कोई आवाज़ तक नहीं आती

आदि से अनन्त हुए

सनातन संघर्षी घावों की आयु है कब से

तुम्हारे संवेदनशील भावों से अनजान

घायल दिन का अस्थि-पंजर समेटे

एक और न गुज़रती रात की अकथनीय पीड़ा ...

दूर, तुम्हारे ख्यालों से भी दूर, अनसुना-सा

रहने का उसका प्रस्ताव संकल्प बन जाता है

पर अगले ही पल ख्यालों में तुम्हारे आने की आहट

गालों पर तुम्हारा वह बरसों पहले का स्नेहिल हाथ

चट्टानी संकल्प काँपता अटकता उलझता

चिलकता है बहुत तब दुखता उदास मन

 -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 622

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on November 29, 2016 at 10:47pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश जी।
आभार में विलम्ब के लिए क्षमा करें... मुझको ओ बी ओ से most notifications नहीं आ रहीं, अत: अभी आपकी टिप्पणी संयोगवश ही दिख गई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 16, 2016 at 12:10pm

बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति बधाई स्वीकार करें आद० विजय निकोर जी |

Comment by vijay nikore on November 7, 2016 at 2:53am

// अहसासों, संवेदनाओं, दर्द की गहराई को शाब्दिक करती बढ़िया प्रस्तुति //

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी।

Comment by vijay nikore on November 4, 2016 at 1:59pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय समर कबीर जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 1, 2016 at 6:30pm
अहसासों, संवेदनाओं, दर्द की गहराई को शाब्दिक करती बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय विजय निकोर जी।
Comment by Samar kabeer on November 1, 2016 at 5:18pm
जनाब विजय निकोर जी आदाब,बढ़िया लगी आपकी रचना,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service