For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भीतर पुराने धूल-सने मकबरे में

धुआँते, भूलभुलियों-से कमरे

अनुभूत भीषण एकान्त

विद्रोही भाव

जब सूझ नहीं कुछ पड़ता है

कुछ है जो घूमघाम कर बार-बार

नव-आविष्कृत बहाने लिए

अमुक स्थिति को ठेल कर

वहीं का वहीं लौटा लाता है

मकबरे के कमरों में गूँजती

गहन वेदना की पुकार

हज़ारों चिन्ताओं की

नपुंसक इच्छाओं की

पीड़ा के लौटते हुए पैरों की पदचाप

नाखुनों में अब दर्दीली हुई मान्यताओं के

भुरते पलस्तरों की मिट्टी

उन सुनसान दीवारों को नाखुनों से नोच-नोच

कुछ मिला ? ..  क्या मिला ?

मकबरा खड़ा शिलामूर्ति

निज के बाहर कोलतारी हवाएँ

भीतर विवश-वेदना, निराशा, द्वंद्व की साँय-साँय

कमरॊं के नीचे मकबरे के भीतरी तहखानों में

ख्यालों की कोई काली सुरंग हर बार

वहीं का वहीं छोड़ जाती है जहाँ

अनदेखे अनजाने अप्रतिहत

ज़िन्दगी से ऊब कर कितनी सच्चाइयाँ

जीने का एक बहुत बड़ा झूठ बन जाती हैं

--------

-- विजय निकोर 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 865

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on November 30, 2016 at 7:36am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश जी। अभी आपकी टिप्पणी संयोगवश ही दिख गई।
आभार में विलम्ब के लिए क्षमा करें... मुझको ओ बी ओ notifications नहीं आ रहीं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 16, 2016 at 1:24pm

आद० विजय निकोर जी बेहद शानदार कविता सृजित हुई आपकी समृद्ध लेखनी से दिल से बधाई लीजिये 

Comment by vijay nikore on October 31, 2016 at 1:58pm

आदरणीय समर कबीर जी, आपने उदार सराहना से मेरा मनोबल बढ़ाया है। आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on October 29, 2016 at 3:03pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by vijay nikore on October 24, 2016 at 3:45pm

सराहना के लिए आभार, आदरणीय श्याम नारायण जी।

Comment by vijay nikore on October 24, 2016 at 3:17pm

//जीवन के उतार चढ़ाव को बहुत सुन्दर रूप से पिरोया है //

आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 23, 2016 at 12:45pm

भीतर विवश-वेदना, निराशा, द्वंद्व की साँय-साँय

कमरॊं के नीचे मकबरे के भीतरी तहखानों में

ख्यालों की कोई काली सुरंग हर बार

वहीं का वहीं छोड़ जाती है जहाँ

अनदेखे अनजाने अप्रतिहत

ज़िन्दगी से ऊब कर कितनी सच्चाइयाँ

जीने का एक बहुत बड़ा झूठ बन जाती हैं--------------बेहतरीन प्रस्तुति . अवसाद के अद्भुत चितेरे हैं आप आ० निकोर जी .

Comment by Samar kabeer on October 20, 2016 at 9:32pm
जनाब विजय निकोर जी आदाब,बहुत ही शानदार रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on October 20, 2016 at 11:41am
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर
Comment by vijay nikore on October 19, 2016 at 10:56pm

//जीवन और जमाने की यथार्थता को बहुत ही कारीगरी से शब्दों में उकेरा है //

मनोबल बढ़ाने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेश जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
16 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
19 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
24 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
41 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
50 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
55 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service