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गजल (फूलों की बात)

2122 2122 2122 2


फूल हैं खिलते निगाहें चार करते हैं,
बागवाँ पर हम बड़ा एतबार करते हैं।1

बाँटते खुशबू जमाने से रहे सब हम,
झेलते झंझा कहाँ तकरार करते हैं?2

हम बटोही प्यार के दो बोल के भूखे ,
खुशनुमा बस आपका संसार करते हैं।3

हैं विहँसते हम सदा बगिया सजाने को,
प्यास आँखों की बुझा आभार करते हैं।4

हो नहीं सकता मसल दे पंखरी कोई,
खार भी रखते बहुत हम प्यार करते हैं।5

जां लुटाने की अगर नौबत हुई तब भी,
बेझिझक एहसान का इकरार करते हैं।6

हो गये आँचल धरा का जो बिखरते हम,
हर गली,हर राह की मनुहार करते हैं।7
मैलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on October 13, 2016 at 9:37pm
आभार आपका आदरणीय सुरेश जी।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 27, 2016 at 10:16am
आदरणीय मनन कुमार जी बहुत ही सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है
Comment by Manan Kumar singh on September 27, 2016 at 7:07am
मोहतरम समर कबीर जी हौसला वर्द्धन के लिए शुक्रिया,आदाब!
Comment by Samar kabeer on September 26, 2016 at 11:48pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं
Comment by Manan Kumar singh on September 26, 2016 at 8:05pm
आपका आभारी हूँ,आदरणीय शकूर जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2016 at 3:36pm

अच्छी ग़ज़ल है आ. मनन कुमार सिंह जी

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