मैं फूल इक छुपा दूँ दिल में किताब रखना
तैयार कल उसी में अपना जबाब रखना
वो सामने कहूँगा जो बात सच लगी है
तुम नाम चाहे मेरा खानाखराब रखना
कैसा एजाज़ वल्लाह कैसा हुनर है तुझमे
होटों पे इक तबस्सुम दिल में अज़ाब रखना
ले लेगी जान मेरी तेरी अदा कसम से
इस वक्त-ए-वस्ल में भी मुख पे निकाब रखना
पीकर जिसे सुखनवर अशआर दिल के कह दे
ज़ज्बात के समंदर ऐसी शराब रखना
मैं खुश रहूँ वहाँ पर है तेरे हाथ में ही
चेहरे को अपने हर दम खिलता गुलाब रखना
मेरा हरेक लम्हा तेरी अदा के सदके
बांहों में चाँद दिल में इक आफ़ताब रखना
--------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० महेंद्र कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
शिज्जू भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया | बह्र लिखना भूल गई थी अतः यहाँ लिख रही हूँ
बहर-ए-मजारअ मुसम्मिन अखरब --२२१ २१२२ २२१ २१२२
आपका बहुत बहुत आभार |
आ. राजेश दीदी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको, बहर भी लिख देतीं तो सभी को फायदा होता :-)
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