For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी (नवगीत 'राज ')

खोलो दिल के वातायन प्रिय मैं आऊँगी

अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी

अलकन में नम शीत मलय की    

बाँध पंखुरी 

पंकज की पाती से भरकर  

मेह अंजुरी

ऊषा की लाली से लाल

हथेली रचकर

कंचन के पर्वत से पीली 

धूप  खुरच कर

कोना कोना मैं ऊर्जा से भर जाऊँगी

अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी

सुरभित कुसुमो के सौरभ को

भींच परों में

चार दिशाओं के गुंजन को

सप्तसुरों  में

बन बाँसुरिया नेह प्रणय की

करूँ पैरवी

तेरे कानों में आ घोलूँ  

राग भैरवी

साँसों की सरगम को झंकृत कर जाऊँगी

अलसाई पलकों पे चुम्बन धर जाऊँगी

------------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 859

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 15, 2016 at 7:13pm

जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 7:09pm

हर नवगीत वस्तुतः एक गीत ही होता है, लेकिन हर गीत नवगीत नहीं होता  -  देवेंद्र शर्मा ’इन्द्र’ (नवगीत विधा के पुरोधा)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 15, 2016 at 7:06pm

जी  जरूर वैसे पहले पढ़े भी हैं किन्तु जब नवगीत पर पूर्णतः फोकस करूंगी तब अवश्य इनमे से बाल की खाल निकालूंगी हाहाहा ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 6:54pm

आदरणीया राजेश जी, नवगीत विधा को लेकर यदि आपके मन में चाहत उमड़ी है तो यह सर्वथा स्वागत योग्य चाहत है. चूँकि यह विधा समझ, भावबोध और तार्किकता की दृष्टि से तनिक अलग किस्म की विधा है, तो रचनाकार को सदा सचेत रहना पड़ता है. सर्वोपरि, यह विधा मानवीय पहलुओं की विशिष्ट दशाओं को आक्षरित करने की विधा है. जिसमें अधुना जीवन के पक्षों को अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत होते बिम्बों से उभारा जाता है. 

जिस तरह से आपकी रचना में एकांगी भावदशा का सहज प्राकट्य हुआ है, और, तत्सम शब्दों की भरमार हुई है, आपकी रचना वहीं नवगीत से छिटक जाती है. आप इस तथ्य पर गहरे से सोचियेगा. 

दूसरे, मैंने जो आलेख आदि लिखे हैं वो किनके लिए लिखे हैं ? और कोई न पढ़े, कमसेकम रचनाकार तो पढ़ें ! बिना सार्थक और आवश्यक अध्ययन के कौन सी विधा सधने वाली है ? वह भी नवगीत और जनगीत जैसी विधाएँ ? 

 

इस मंच पर भी फोरम समूह में ’गीत, नयी कविता और नवगीत’ पर आलेख पड़ा है ! दो भागों में ! कमसेकम इन तीनों से परिचयात्मक मिलन तो कर ही लीजिये.. :-))

हा हा हा हा.. 

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 15, 2016 at 6:27pm

आद० सौरभ जी ,प्रस्तुति पर आपका आना तारीफ करना और विधा के विषय में संशय दूर करना अच्छा लगा |लिखते वक़्त भी यही सोच रही थी की ये गीत में आएगा या नवगीत में आएगा भाव सब बिम्बात्मक लिए हैं इस लिए सोच रही थी की शायद ये नवगीत की श्रेणी में आएगा खैर आपने संशय दूर कर दिया | आपका बहुत बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 15, 2016 at 6:24pm

आद० अलका जी आपको यह गीत पसंद आया आपका दिल से बहुत- बहुत आभार |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 6:09pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी प्रस्तुति से मन प्रसन्न है. अत्यंत गहनता से भावों को शाब्दिक करने का प्रयास हुआ है. साथ ही, मैं आदरणीया अलका जी कहे से पूरी तरह सहमत हूँ, जिन्होंने आपकी रचना को गीत कह कर ही सम्बोधित किया है, बावज़ूद आपके ’नवगीत’ लिखने के ! आदरणीया, आपकी रचना शुद्ध गीत विधा की रचना है. 

सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 5:42pm

वाह ....बहुत सुंदर गीत ....   राजेश कुमारी जी बधाई ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 13, 2016 at 11:24pm

ब्रिजेश कुमार बृज जी ,आपको नवगीत  पसंद आया  दिल से बहुत बहुत आभार आपका |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 13, 2016 at 2:04pm

वाहह आदरणिया क्या शानदार लेखनी चली है....अतीव सुंदर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
12 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
13 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service