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कलम मेरी खामोश नहीं

कलम मेरी  खामोश नहीं, ये लिखती नई कहानी है।

इसमें स्याही के बदले मेरी, आंखों वाला पानी है।।

सृजन की सरिता इससे बहती

झूठ नहीं ये सच है कहती।

जीवन के हर सुख-दुख में ये,

कलम सदा संग मेरे रहती॥

ये मेरी सहचरी,मेरी सहेली , मेरे दिल की रानी है।

इसमें स्याही के बदले मेरी ,आंखों वाला पानी है।।

इसने जीना मुझे सिखाया,

सच से परिचय मेरा कराया।

जीवन की सच्चाई लिखाकर,

मुझे कवि इसने ही बनाया।।

मेरे आपके अनुभवों की, ये तस्वीर नूरानी है।

इसमें स्याही के बदले मेरी ,आंखों वाला पानी है।।

कलम कवि का है हथियार,

इसका है सब पर अधिकार।

जीवन के इस महासागर में,

कलम बनी मेरी पतवार।।

अटल इरादों वाली है ये,इसकी चाल तूफानी है।

इसमें स्याही के बदले मेरी ,आंखों वाला पानी है।।

कलम का सौदा कर न सकूँगा,

मैं खुद की हत्या कर न सकूँगा।

इसके सहारे जीता हूँ मैं,

इससे धोखा कर न सकूंगा॥

ये मेरी पहचान है,मेरे गौरव की ये निशानी है।

इसमें स्याही के बदले मेरी ,आंखों वाला पानी है।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

प्रदीप बहुगुणा ’दर्पण’

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Comment by Pradeep Bahuguna Darpan on October 19, 2016 at 7:43pm

सराहना के लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद। 

Comment by Samar kabeer on September 22, 2016 at 7:07pm
जनाब प्रदीप जी आदाब,बहुत बढ़िया रचना लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 22, 2016 at 5:16pm

बढ़िया रचना आदरणीय प्रदीप जी | बधाई स्वीकारें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 22, 2016 at 3:50pm

आदरणीय प्रदीप जी अच्छी रचना है

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