For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मसअले कितने मुझे तेरे सवालों में मिलें

संशोधित

2122 1122 1122 112/22

मसअले कितने मुझे तेरे सवालों में मिले

यूँ अँधेरों की झलक दिन के उजालों में मिले

 

आपके ग़म से किसी को कोई निस्बत ही कहाँ

बेबसी दर्द हमेशा बुरे हालों में मिले

 

अब मेरे शहर में भी लोग खिलाड़ी हुए हैं

पैंतरे खूब हर इक शख़्स की चालों में मिले

 

चंद लम्हात मसर्रत के सुकूँ के कुछ पल

ऐसे मौके तो मुझे सिर्फ ख़यालों में मिले

 

दोस्ती और मुहब्बत के मनाज़िर हर सुब्ह

मेज़ पर लुढ़के हुए मय के पियालों में मिले

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 944

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 28, 2016 at 2:47pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. बृजेश कुमार बृज जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 3, 2016 at 7:57pm

क्या कहने आदरणीय बहुत ही शानदार ग़ज़ल हार्दिक बधाइयाँ ....पटल पे हुई चर्चा गागर में सागर की तरह है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 4, 2016 at 12:57pm
ग़ज़ल पर सार्थक चर्चा कज लिए आ. सौरभ सर एवं समर कबीर साहब का बहुत बहुत शुक्रिया। निश्चित ही पढ़ने वालों को फायदा होगा
Comment by Samar kabeer on August 4, 2016 at 12:21am
जनाब शिज्जु शकूर जी आदाब,एक बार आपकी ग़ज़ल पर सरसरी सी प्रतिक्रिया देकर मैं गुज़र चुका हूँ ,अब दोबारा हाज़िर हूँ ।
जब इस ग़ज़ल के एक मिसरे को लेकर आपसे टेलिफ़ोनिक चर्चा हुई थी उस वक़्त आपने यह बताया था कि आपने अहमद 'फ़राज़' साहिब की ज़मीन में क़ाफ़िया बदल कर कही है ,उस वक़्त आपने मुझे पूरी ग़ज़ल नहीं सुनाई थी । रदीफ़ को लेकर आपकी ग़ज़ल पर जो चर्चा हुई है वह बहुत ही सार्थक है,मैं इसमें थोड़ा सा इज़ाफ़ा करना चाहूँगा ,अहमद 'फ़राज़' साहिब की ग़ज़ल की रदीफ़ 'में मिलें' है और आप की रदीफ़ हो गई है 'मिले', 'फ़राज़' साहिब ने इस ग़ज़ल में जो क़वाफ़ी लिये हैं वो सब बहुवचन के हैं ,आपके क़ाफ़िये भी बहुवचन के हैं ,इन दोनों ग़ज़लों में फ़र्क़ यह है कि फ़राज़ साहिब के क़ाफ़िये रदीफ़ के साथ पूरा पूरा इंसाफ़ कर रहे हैं और आपके क़ाफ़िये रदीफ़ के साथ इंसाफ़ नहीं कर रहे हैं,इसकी वजह यह है कि क़ाफ़िये से पहले बयान के अल्फ़ाज़ रदीफ़ को टच नहीं कर रहे हैं,जबकि उन्हें रदीफ़ से मेल खाना चाहिये था ,मिसाल के तौर पर मैंने अभी आपके क़वाफ़ी में एक मतला और एक शैर फ़िल बदीह कहा है,देखिये :-

"काम कुछ ऐसा करें सबके ख़यालों में मिलें
तज़किरे अपने ज़माने की मिसालों में मिलें"

"रात का गहरा अंधेरा हमें बहकायेगा
ठीक तो यह है कि हम दिन के उजालों में मिलें"

कहने का मतलब यह है कि ग़ज़ल में रदीफ़ की भूमिका सबसे अहम होती है इसलिये ग़ज़ल में इस पर तवज्जो देना बेहद ज़रूरी है।
Comment by Ashok Kumar Raktale on August 3, 2016 at 11:55am

आदरणीय भाई शिज्जू जी सादर, सुन्दर गजल कही है.बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. किन्तु मिले की जगह मिलें का प्रयोग कुछ खटक रहा है. प्रतिक्रियाओं में इस पर चर्चा भी  हुई ही है. सादर.  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2016 at 6:08pm

// क्या हम मिलते हैं को मिलें नहीं लिख सकते? //

सॉरी, मैं समझा ही नहीं शिज्जू भाई. थोड़ा और स्पष्ट करें तो मुझे भी कुछ क्लीयर हो. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 2, 2016 at 6:04pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ सर मेरे मन में एक शंका और है, क्या हम मिलते हैं को मिलें नहीं लिख सकते?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 6:00pm

आदरणीय सौरभ भाई जी , आपने व्याकरण की बहुत बारीक बात समझाई , और दोनो के अंतर को उदाहरण देकर पानी की तरह साफ कर दिया । मन मे ख़टक होती थी पर व्यक्त करने के लिये शब्द नही मिलते थे । मेरे खयाल से इसे और दुरुस्ती की ज़रूरत नही है , पूर्ण है ये ।

एक बात और -- ऐसे ही शंका की स्थिति  , ही और भी के उपयोग मे भी आती है , वैसे ये जगह सही नही है इस बात के लिये इन दो शब्दों मे भी बहुत बारीक अंतर है ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2016 at 5:16pm

इस ग़ज़ल पर कुछ कहने के पूर्व एक तथ्य साझा करना चाहता हूँ. हो सकता है, मैं सुधीजनों के द्वारा इस विन्दु पर दुरुस्त भी किया जाऊँ. यह मेरा सौभाग्य होगा.

 
वस्तुतः मिलें, खेलें, दौड़ें आदि जैसी क्रियाएँ बहुवचन संज्ञा की ’अपेक्षा’ या किसी ’चाहत’ का परिचायक होती हैं. जबकि किसी क्रिया का भूतकाल (Past Tense) एकवचन या बहुवचन की संज्ञा के साथ हो क्रमशः मिले, खेले, दौड़े ही होगी. यानी, ’ए’ की मात्रा के साथ अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा. जैसे, तीन लड़के दौड़े. वे सभी खेले. आदि

उदाहरण के लिए एक संवाद लें -
’इस समस्या की कोई राह अवश्य निकलेगी. आप भोपाल जाकर मिथिलेशजी से मिलें. .’
’मैं भोपाल गया था. वहाँ मिथिलेश जी ही नहीं, राजूरकरजी, सूर्याजी, समरजी, अशोकजी भी नहीं मिले..’

विश्वास है, आपको मेरा कहा स्पष्ट हुआ होगा.

इस हिसाब से आपकी इस ग़ज़ल के कई मिसरे किसी अपेक्षा या आशा का भाव संप्रेषित नहीं करते, बल्कि शुद्ध भूतकाल की घटनाओं का निरुपण हैं. अतः उन मिसरों में व्याकरण-दोष है. आपसे हुई टेलिफोनिक चर्चा के अनुसार आप इस कहे का सही अर्थ समझ रहे होंगे, शिज्जू भाई.
शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:32pm

चंद लम्हात मसर्रत के सुकूँ के कुछ पल

ऐसे मौके तो मुझे सिर्फ ख़यालों में मिलें    --  बहुत खूब , आ. शिज्जु भाई , इस शे र और गज़ल के लिये दिली मुबारकबाद आपको ।

मतले के सानी मे , यूँ अँधेरों को ज्यूँ अँधेरों  कर ना क्या सही नही होगा ?    सोच लीजियेगा  अगर सही लगे तो ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service