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गजल(अब नयी पहचान देगा...)

2122 2122 212
अब नयी पहचान देगा आदमी
बात पत्थर से करेगा आदमी।1

जो मरा अबतक बचाते जिंदगी
क्या कभी आगे मरेगा आदमी?2

पोंछता आँसू जमाने से रहा
खून बन अब तो बहेगा आदमी।3

लाज का फटता वसन हर मोड़ पर
अब भला कितना सियेगा आदमी।4

मोहरों का बन रहा है मोहरा
आपको पहचान लेगा आदमी?5

गलतियों पर चढ़ रही कबसे बरक
कब भला यह मान लेगा आदमी?6

ढूँढते तुम आ गये हो दूर तक
देख लो शायद मिलेगा आदमी।7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on July 27, 2016 at 8:32am
आदरणीय अशोक जी,प्रेरणा के स्नेह-सने शब्दों के लिए दिली आभार,सादर।
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 27, 2016 at 8:27am

लाज का फटता वसन हर मोड़ पर
अब भला कितना सियेगा आदमी।4.....वाह ! सुंदर.

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल हुई है. बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

Comment by Manan Kumar singh on July 26, 2016 at 7:08pm
आदरणीय गिरिराज भाई,आपका आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2016 at 5:18pm

आदरणीय मनन भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।

Comment by Manan Kumar singh on July 26, 2016 at 7:12am
आपका आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
Comment by Mahendra Kumar on July 26, 2016 at 6:49am
ढूँढते तुम आ गये हो दूर तक
देख लो शायद मिलेगा आदमी। ...बहुत ख़ूब! हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय मनन जी!

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