For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़बाँ दिल की सुख़नवर बोलता है (ग़ज़ल)

1222 1222 122

ज़बाँ दिल की सुख़नवर बोलता है
वो सारी बातें खुलकर बोलता है

हमारी खाक़सारी की बदौलत
जिसे देखो, अकड़कर बोलता है

वो, जिसको पूजती है सारी दुनिया
ये नादाँ उसको पत्थर बोलता है

सियासत से जो वाकिफ़ ही नहीं है
सियासी मसअलों पर बोलता है

ज़ुबाँ का ज़ह'र बाहर आ न जाए
वो ले के मुँह में शक्कर, बोलता है

जुबानें कट चुकी हैं क़ायदों की
यहाँ अब सिर्फ पॉवर बोलता है

तुम्हारा शीशा-ए-दिल चूर होगा
ज़माना मुझसे अक़्सर बोलता है

Views: 514

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 18, 2016 at 10:40pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय जयनित जी, दाद कुबूल करें

Comment by Ravi Shukla on July 4, 2016 at 2:48pm

आदरणीय जयनित जी बहुत ही अच्‍छी गजल कही है आपने बधाई स्‍वीकार करेंं

हमारी खाक़सारी की बदौलत
जिसे देखो, अकड़कर बोलता है बढिया बात कहीे आने बधाई ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2016 at 2:38pm

भाई जय्नित जी ..इस सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें .

Comment by जयनित कुमार मेहता on June 15, 2016 at 6:33pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपकी उपस्थिति व सराहना के लिए आभारी हूँ।
सादर!
Comment by जयनित कुमार मेहता on June 15, 2016 at 6:32pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी,मेरी रचना पर उपस्थित होने व अपना विचार रखने के लिए हार्दिक आभारी हूँ आपका।
सादर!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 9:46am

आदरणीय जयनित भाई , शुरू त आखिर हरेक शे र के लिये आपको दिल से बधाइयाँ ! लाजवाब गज़ल हुई है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 13, 2016 at 11:53am

वो, जिसको पूजती है सारी दुनिया
ये नादाँ उसको पत्थर बोलता है----वाह वाह बहुत खूब 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है जयनित भैया हार्दिक बधाई 

चौथे शेर में तकाबुले रदीफ़ दोष देख लें 

सियासत से जो वाकिफ़ ही नहीं है---नहीं वो कर सकते हैं 

मकते के उला की बह्र पर संदेह हैं 

Comment by जयनित कुमार मेहता on June 12, 2016 at 7:40pm
क्षमा चाहता हूँ,
"मौलिक व अप्रकाशित" लिखना भूल गया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service