ग़ज़ल (गुलशन के लिए )
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2122 --2122 --212
जो चुने तिनके नशेमन के लिए ।
जल गए वह रात गुलशन के लिए ।
ख़ार मुरझाते नहीं गुल की तरह
क्यों नहीं चाहूँ मैं दामन के लिए ।
उनको ही शायर समझता है जहाँ
जिन के ईमां बिक गए धन के लिए ।
रास्ते तन्हा कभी कटते नहीं
लाज़मी साथी है जीवन के लिए ।
क्या पता कब दिल पे कर जाए असर
मैं वफ़ा रखता हूँ दुश्मन के लिए ।
जो हुए झगड़े जहाँ में आजतक
वह हुए हैं ज़र ,ज़मीं ,ज़न के लिए ।
छोड़ दे तस्दीक़ सच को बोलना
यह कहाँ मुमकिन है दरपन के लिए ।
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मोहतरम जनाब सुशील सरना साहिब ,ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब ,ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
जनाब जान गोरखपुरी साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
आदरणीय तस्दीक साहिब बहुत ही दिलकश ग़ज़ल हुई है ... हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस पेशकश के लिए।
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