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ग़ज़ल (गुलशन के लिए )

ग़ज़ल (गुलशन के लिए )

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2122 --2122 --212

जो चुने तिनके नशेमन के लिए ।

जल गए वह रात गुलशन के लिए ।

ख़ार मुरझाते नहीं गुल की तरह

क्यों नहीं चाहूँ मैं दामन के लिए ।

उनको ही शायर समझता है जहाँ

जिन के ईमां बिक गए धन के लिए ।

रास्ते तन्हा कभी कटते नहीं

लाज़मी साथी है जीवन के लिए ।

क्या पता कब दिल पे कर जाए असर

मैं वफ़ा रखता हूँ दुश्मन के लिए ।

जो हुए झगड़े जहाँ में आजतक

वह हुए हैं ज़र ,ज़मीं ,ज़न के लिए ।

छोड़ दे तस्दीक़ सच को बोलना

यह कहाँ मुमकिन है दरपन के लिए ।

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 17, 2016 at 7:40pm

मोहतरम जनाब सुशील  सरना  साहिब   ,ग़ज़ल में गहराई से  शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से  बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 17, 2016 at 7:39pm

मोहतरम जनाब समर कबीर  साहिब आदाब  ,ग़ज़ल में गहराई से  शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से  बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 17, 2016 at 7:37pm

जनाब जान गोरखपुरी साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

Comment by Sushil Sarna on May 17, 2016 at 3:48pm

आदरणीय तस्दीक साहिब बहुत ही दिलकश ग़ज़ल हुई है  ... हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस पेशकश के लिए। 

Comment by Samar kabeer on May 17, 2016 at 2:58pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 17, 2016 at 1:58pm
आ.तस्दीक़ अहमद सर मुरस्सा ग़ज़ल हुयी है,हर शेर नायाब।तरही मुशायरे अब और जबरदस्त होने वाला है।हार्दिक बधाई।

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