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ज़िद्दी बालक से अश्रु

अश्रु जब बागी हो जाते हैं 
तो  सुनते ही नहीं 
किसी भी बहाने से 
 बहलाने से 
फुसलाने से
सौ सौ जतन जुटाने से 
 कितना मनाओ
नहीं बहते तो बस बहते ही  नहीं। .. 
 
ज़िद्दी बालक से  अश्रु  
 
और जब अपनी पर आ जाएँ 
तो फिर बस आ जाएँ 
 ज्वार भाटा ले आएं 
बड़े बड़े न  रोक पाएं  
लक्ष हज़ारों तर्क   
इज़्ज़त, मान, अपमान के  
कितने  वास्ते  जुटाएं
मजाल है कि किसी की  सुन जाएँ 
 
ज़िद्दी बालक से  अश्रु 
 
असल में इनको छेड़ना सायास 
नितांत  ही  गलत प्रयास 
अश्रु कोई पानी का कतरा तो नहीं 
ये तो निःशब्द की जुबां है 
खामोशी का शोर हैं 
अनकही सुबकती  दास्तां हैं  
 
नहीं मांगते  गीता उपदेश 
चाहते हैं बस एक कांधा 
सर पर एक उच्छ्वास 
थोड़ी सी सांत्वना 
एक पैबंद लगा विश्वास 
बस इतनी सी बात 
 
बस इतना ही तो भर 
और फिर 
अश्रु  स्वंय होने लगते हैं ओस 
प्यार के  दुलार के 
बस एक पुचकार के  
बस इतने से सवाल के  
 अश्रू अस्मिता पर  पहरे  रहते   है 
अश्रु  कोइ स्वप्न तो नहीं 
जो आँखों में ठहरे  रहते  है  
अश्रु  रोकने से न कभी  रुकते हैं  
 अश्रु बहाने से न कभी बहते हैं 
.
"मौलिक व अप्रकाशित"
 अमिता 

 

Views: 495

Comment

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 5, 2016 at 8:33pm
अश्रु की बहुत सुन्दर परिभाषा पेश की है आदरणीया अमिता तिवारी जी।बधाई।
Comment by amita tiwari on June 5, 2016 at 8:27pm

मान देने के लिए हार्दिक आभार. 

सादर आभार।

(देरी के लिये सादर क्षमा)"


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Comment by rajesh kumari on May 12, 2016 at 9:17am

अश्रू  पर बहुत खूब भावपूर्ण  रचना  अमिता जी हार्दिक बधाई 

Comment by amita tiwari on May 4, 2016 at 7:22pm

प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 4, 2016 at 2:07pm

बहुत सुंदर रचना | बधाई | 

Comment by amita tiwari on May 3, 2016 at 6:42pm

मान देने के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 3, 2016 at 4:44pm

आदरणीया अमिता जी, अश्रु पर बहुत बढ़िया प्रस्तुति...हार्दिक बधाई... सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on April 30, 2016 at 10:07am
बहुत सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति, हार्दिक बधाई ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 30, 2016 at 9:58am

जबरजस्त....भावों की बहुत ही ह्रदयस्पर्शी माला पिरोई है...बहुत सुन्दर 

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