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ग़ज़ल : बना कर इक बड़ी लाइन

1222 1222 1222 1222

बना कर इक बड़ी लाइन कई बीमार बैठे हैं,
उन्हींके साथ में कितने यहां एमआर बैठे हैं।

न जाने सेल को किसकी नज़र ये लग गई यारब,
रिटेलर सब हमारी कोशिशों के पार बैठे हैं ।

ये जितने डाक्टर है सब मुझे जल्लाद लगते है,
मरीजो को दवा क्या दें लिए तलवार बैठे हैं।

मरीजे इश्क हैं सारे इन्हें मतलब नज़ारे से,
लिए आँखों में कब से हसरते दीदार बैठे हैं।

दुपहिया धूप में रक्खा उठा कर चल पड़े थे वो,
बयाँ के बाद की तकलीफ में सरकार बैठे हैं।

हमें खाली लिफ़ाफ़ा वो थमाकर देखिये खुद ही,
वलीमा खा गये कितने कई तैयार बैठे हैं ।

भला क्यों मुफ़्त का हर माल ग़ालिब को लगा अच्छा,
बतायें तो बड़े नक्काद जो हुशियार बैठे हैं ।

चुरा ली जूतियां मेरी किसी ने कल जो हुजरे से,
कसम से मिल वो जाये आज खाये खार बैठे हैं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by rajesh kumari on April 25, 2016 at 9:58pm

वाह्ह्ह  वाह्ह  क्या जबरदस्त कटाक्ष किया है डॉक्टर पर आँखों के सामने चित्र सा बन गया पढ़ते पढ़ते क्या खूब कहा .बहुत मजेदार रोचक ग़ज़ल कही आ० रवि शुक्ल भैया दिल से दाद हाजिर है .


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 25, 2016 at 6:37pm

आदरणीय रवि भाई , आपने शिज्जु भाई के दिल की बात कह दी है , मतले और एक शेर में । अच्छी गज़ल हुई है दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:57pm

आदरणीय शिज्‍जु भाई आप जानते हैै इसके कुछ शेर के पीछेे आप के अनुभ्‍ााव है और आपके साथ हुई चर्चा है । इसलिये सभी आदरणीय मित्रों की दाद ओ मुबारक बाद के आप भी हकदार है । और अगर कोई डाक्‍टर हमसे नाराज हो जाए तो उसमें भी साझेेदारी कर लीजियेगा ।  हा हा हा

आभार आपको हमारी ओर से । सादर 

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:54pm

आदरणीय तसदीक अहमद जी आपकी गजल पर मौजूदगी खुशी का सबब है दाद पाकर अच्‍छा लगा बहुत बहुत धन्‍यवाद 

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:53pm

आदरणीय समर कबीर साहब आदाब आपसे गजल पर दाद पाकर आश्‍वस्‍त हुए है । खिचांई का इरादा नहीं था बस शेर हो गये मजाहिया में कभी कभी बात बढ़ा चढ़ा कर कह दी जाती है । ये हमारा अनुभव है । हमारी गजल के बहाने से आपने एक खूबसूरत सा शेर मंच पर साझा किया उसके लिये और गजल पर आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बेहद  शुक्रिया । सादर । 

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:50pm

आदरणीय ब्रजेश जी गजल पर आपकी उपस्थिति का धन्‍यवाद स्‍वीीकार करें 

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:49pm

आदरणीय विजय जी गजल पसंद आई धन्‍यवाद स्‍वीकार करें 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 24, 2016 at 9:45pm
जय हो आदरणीय रवि शुक्ला जी खूब ग़ज़ल हुई है
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 24, 2016 at 7:30pm

मोहतरम  जनाब रवि शुक्ल    साहिब  , ' उन्हीं के साथ में कितने यहाँ एम आर बैठे हैं ;  बहुत खूब , आपने डॉक्टरों को बे पर्दा कर दिया
बेहतर ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं  

Comment by Samar kabeer on April 24, 2016 at 6:00pm
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,डॉक्टरों की अच्छी खिंचाई करदी आपने,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
आपकी ग़ज़ल सुनकर किसी पुरानी ग़ज़ल का मतला यद् आगया:-मुआफ़ कीजिये मतला नहीं शैर:-
"न छेड़ ऐ नकहत-ए-बाद-ए-बहारी राह लग अपनी
तुझे अटखेलियां सूझी हैं हम बेज़ार बैठे हैं" ।

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