स्क्रिप्ट के पन्ने पलटते हुए अचानक प्रोड्यूसर के माथे पर त्योरियाँ पड़ गईं, पास बैठे युवा स्क्रिप्ट राइटर की ओर मुड़ते हुए वह भड़का:
"ये तुम्हारी अक्ल को हो क्या गया है?"
"क्या हुआ सर जी, कोई गलती हो गई क्या?" स्क्रिप्ट राइटर ने आश्चर्य से पूछाI
"अरे इनको शराब पीते हुए क्यों दिखा दिया?"
"सर जो आदमी ऐसी पार्टी में जाएगा वो शराब तो पिएगा ही न?"
"अरे नहीं नहीं, बदलो इस सीन कोI"
"मगर ये तो स्क्रिप्ट की डिमांड हैI"
"गोली मारो स्क्रिप्ट कोI यह सीन फिल्म में नहीं होना चाहिएI"
"लेकिन सर नशे में चूर होकर ही तो इसका असली चेहरा उजागर होगाI"
"जो मैं कहता हूँ वो सुनोI ये पार्टी में आएगा, मगर दारू नहीं सिर्फ पानी पिएगा क्योंकि इसे धार्मिक आदमी दिखाना हैI"
"लेकिन ड्रग्स का धंधा करने वाला आदमी और शराब से परहेज़? ये क्या बात हुई?"
"तुम अभी इस लाइन में नए हो, इसको कहते हैं कहानी में ट्विस्टI"
"अगर ये धार्मिक आदमी है तो फिर उस रेप सीन का क्या होगा?"
"अरे यार तुम ज़रुर कम्पनी का दिवाला पिटवाओगेI खुद भी मरोगे और मुझे भी मरवाओगेI ऐसा कोई सीन फिल्म में नहीं होना चाहिएI"
"तो फिर क्या करें?"
"करना क्या है? कुछ अच्छा सोचोI स्क्रिप्ट राइटर तुम हो या मैं? प्रोड्यूसर ने उसे डांटते हुए कहाI
स्क्रिप्ट राइटर कुछ समझने का प्रयास ही कर रहा था कि प्रोड्यूसर स्क्रिप्ट का एक पन्ना उसके सामने पटकते हुए चिल्लाया:
"और ये क्या है? इसको अपने देश के खिलाफ ज़हर उगलते हुए क्यों दिखाया है?"
"कहानी आगे बढ़ाने लिए यह निहायत ज़रूरी है सर, यही तो पूरी कहानी का सार हैI" उसने समझाने का प्रयास कियाI
"सार वार गया तेल लेने! थोडा समझ से काम लो, यहाँ देश की बजाय इसे पुलिस और प्रशासन के ज़ुल्मों के खिलाफ बोलता हुआ दिखाओ ताकि पब्लिक की सिम्पथी मिलेI" प्रोड्यूसर ने थोड़े नर्म लहजे में उसे समझाते हुए कहाI
"नहीं सर! इस तरह तो इस आदमी की इमेज ही बदल जाएगीI एक माफ़िया डॉन जो विदेश में बैठकर हमारे देश की बर्बादी चाहता है, जो बम धमाके करवा कर सैकड़ों लोगों की जान ले चुका है, उसके लिए पब्लिक सिम्पथी पैदा करना तो सरासर पाप हैI" स्क्रिप्ट राइटर के सब्र का बाँध टूट चुका थाI
उसे यूँ भड़कता देख, अनुभवी और उम्रदराज़ अभिनता जो सारी बातें बहुत गौर से सुन रहा था, उठकर पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए धीमे से बोला:
"राइटर साहिब! हमारी लाइन में एक चीज़ पाप और पुण्य से भी बड़ी होती हैI"
"वो क्या?"
"वो है फाइनेंसI फिल्म बनाने के लिए पुण्य नहीं, पैसा चाहिए होता है पैसा! कुछ समझे?"
"समझने की कोशिश कर रहा हूँ सरI" ठंडी सांस लेते हुए उसने जवाब दियाI
सच्चाई सामने आते ही स्क्रिप्ट राइटर की मुट्ठियाँ बहुत जोर से भिंचने लगीं और वहाँ मौजूद हर आदमी अब उसको माफ़िया डॉन का हमशक्ल दिखाई दे रहा थाI
.
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया से कलम को हौसला मिला है! हृदयतल से सादर आभार भाई धर्मेन्द्र सिंह जीI
आपकी उपस्तिथि और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय तल से आभारी हूँ भाई चन्द्रेश जीI रचना की इतने हृदयग्राही शब्द में प्रशंसा करने हेतु सच्चे अंतर्मन से धन्यवाद आपकोi
आ० भाई योगराज जी इस सधी हुई यथार्थ परक कथा के लिए कोटि कोटि हार्दिक बधाई l
दिल से शुक्रिया आ० राहिला जीI
आपने रचना को अपना बहुमूल्य समय देकर सराहा और मेरा मान बढ़ाया, हार्दिक आभार आ० डॉ विजय शंकर जीI
आ० सौरभ भाई जी, सबसे पहले तो लघुकथा के मर्म तक पहुँचने और उसकी मुक्तकंठ प्रशंसा हेतु आपका अतिशय आभार प्रकट करता हूँI दरअसल लघुकथा विधा में शीर्षक को लघुकथा का ही एक हिस्सा माना जाता हैI विद्वानों का मत है कि या तो कथा शीर्षक से न्याय करती हो या फिर शीषक ही पूरी कहानी कहता हुआ होI आप शायद विश्वास न करें, इस लघुकथा को मेरे अनुज रवि प्रभाकर ने ३-४ दफा रिजेक्ट किया था, उनसे से २ दफा तो केवल शीर्षक की वजह सेI तब जाकर दो शीर्षक "खिलाड़ी" और "जमूरे" ज़ेहन में आएI पर अंतिम सहमति "जमूरे" पर ही बनीI क्योंकि इस कथा के पात्र खिलाड़ी अवश्य हैं, लेकिन किसी और के इशारे पर खेल रहे हैं, अत: खिलाड़ी होते हुए भी "जमूरे" ज्यादा हैंI बात भले ही फिल्म इंडस्ट्री से सम्बंधित कही गई है, लेकिन जैसा आपने भी कहा कि ऐसे जमूरे तो जिंदगी के हर शो'बे में ही मौजूद हैंI कथा को समय और मान देने हेतु ढेरों ढेर आभार आदरणीयI
लघुकथा के संदर्भ में किसी सनातन पंक्ति की तरह यह बात स्पष्ट हो गयी है कि शीर्षक लघुकथाओं का अन्यतम हिस्सा हुआ करता है. इस प्रस्तुति को पढ़ते हुए यह बात मन में बार-बार कौंध रही थी, आदरणीय योगराज भाईजी. क्या सटीक शीर्षक हुआ है !
जहाँ तक लघुकथा के पात्रों के संवाद और उनके प्रभाव की बात है, तो पाठक एकदम से बँधा रह जाता है.
सर्वोपरि, लघुकथा का एक और गुण होता है जिसपर अभी तक खुल कर बात नहीं हो सकी है. लेकिन आपने उस विन्दु को इस प्रस्तुति के माध्यम से खोल दिया है ! वो विन्दु है, इंगितों का तिर्यक प्रभाव पड़ना ! इस लघुकथा का वातावरण, इसके पात्र, उनके संवाद और संवादों के इंगित ठीक वही नहीं हैं, जो प्रतीत हो रहे हैं. बल्कि, इनका लक्ष्य नितांत कहीं और है, जिसे पाठक को पकड़ना ही है. अन्यथा प्रस्तुति का अभिधात्मक व्यवहार कुछ स्पष्ट नहीं होने देगा. लेकिन उस स्थिति में भी प्रस्तुति रोचक बनी रहेगी. जैसा कि प्रतीत हो भी रहा है.
किन्तु, लघुकथा के इंगितों के पकड़ में आते ही लघुकथा अधिक मारक हो जाती है. आजकी सम-सामयिक घटनाएँ जिस तरह से इस लघुकथा में पिरोयी गयी है वह इस विधा पर आपकी बेजोड़ पकड़ का हामी है. मैं आपकी किस्सागोई का कायल रह हूँ, आदरणीय, आपके विन्यास के प्रति भी मेरा यही सोचना है.
हार्दिक बधाइयाँ, भाई साहब. यह लघुकथा अपने विन्यास और इंगितों के बरअक्स सदा याद रहेगी.
शुभ-शुभ
ग़जब, ग़जब। सचमुच बालीवुड की अधिकांश फ़िल्में देखकर ऐसा ही लगता है। दिली दाद कुबूल करें आदरणीय योगराज जी।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online