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प्यार कहते हैं कि हर चाव बदल देता है
एक मरहम की तरह घाव बदल देता है /1
अश्क लेकर भी किसी को न तू रोते दिखना
कहकहा आँख का बरताव बदल देता है /2
झील ठहरी है बहुत वक्त से कंकड़ मारो
एक कंकड़ ही तो ठहराव बदल देता है /3
अजनवी सोच के यूँ दूर न बैठो हमसे
मिलना जुलना ही मनोभाव बदल देता है /4
माँ की ममता से मिली सीख ये हमको यारो
हर किसी पीर को सहलाव बदल देता है /5
काम आता न हो चाहे कि करो कोशिश कुछ
हर कमी रोज का दुहराव बदल देता है /6
22 दिसम्बर 2015
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’
Comment
दोष हर रोज का दुहराव बदल देता है
.....वाह.....सोने पर सुहागा .....इस बेहतरीन सुझाव के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आ० भाई मिथिलेश जी ...स्नेह बनाये रखें l
आ० भाई रवि जी आपका कथन सत्य है ,पर कई बार मैने बातचीत में बदल शब्द का प्रयोग सुधार के सन्दर्भ में भी होते देखा है और यहाँ भी इसी सन्दर्भ में किया है ...
शानदार ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई
//दोष हर रोज का दुहराव बदल देता है // किया जा सकता है सादर
आदरणीय लक्ष्मण जी अच्छी ग़ज़ल के लिये दाद कुबूल कीजिये बहुत बहुत बधाई
मतले के सानी में भाव समझ आ रहा है पर शब्दों से एेसा हमें नही लगा घाव बदलना मतलब घाव तो रह ही गया मरहम घाव को ठीक कर देता है उसकी सूरत बदल जाती है इस लिहाज से मतले का सानी हमें थोड़ा असहज लग रहा है । अाखिरी शेर में कमी दोहराव बदल देती है पर रदीफ के कारण आपने उसे कमी को बदल देता है के रूप में प्रयुक्त किया है । बाकी सभी शेर के श्ाानदार कथ्य के लिये बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें । यदि हमारा सोचना गलत हो तो कृपया मार्गदर्शन अवश्य दीजियेगा ।
आदरणीय भाई धर्मेन्द्र जी ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय भाई सूर्या जी ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय पंकज भाई ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद.
आदरणिया प्रतिभा बहन ग़ज़ल का अनुमोदन करने के लिए आभार .
कहकहा आँख का बरताव बदल देता है...वाह वाह मुसाफिर साहिब क्या कहने।
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