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2122   1122   1122   22

किसको कितना है मिला माल,न हमसे पूछो।

हाँ!  करप्शन  का  ये  जंजाल न  हमसे पूछो।

तेरे  कारण  हुई  है, ये  जो  मेरी  हालत  है,

अब  तुम्हीं  आके  मेरा  हाल  न  हमसे  पूछो।

ज़ेह्न-ओ-दिल से तेरी यादों को मिटा डाला,अब

बीते  दिन, गुज़रे  हुए  साल  न  हमसे  पूछो।

कौन आख़िर ले गया गाँव की पंचायत को,

कहाँ  ग़ायब  हुए  चौपाल, न  हमसे  पूछो।

जनवरी और दिसंबर के महीने में "जय",

सूर्य  तोड़ेगा  कब  हड़ताल  न  हमसे  पूछो।

=============================

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 6, 2015 at 10:49am

क्या बात है , आ. लक्षम्ण भाई , आपका आगे आकर कठिनाई का हल बताना बहुत अच्छा लगा , शुक्रिया आपका ।

आ. जयनित भाई , आपका प्रयास भी सही है , चाहे जिसे रखें ।

आप ही ने तो बनाई ये हमारी हालत,
इस तरह बे हया हो हाल न हमसे पूछो  --एक  सुधार ऐसे भी कर सकते हैं

Comment by जयनित कुमार मेहता on December 6, 2015 at 9:39am
सुझाव के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद,आदरणीय लक्षमण जी..

आपके शेर से प्रेरित इस शेर के बारे में क्या विचार है आपका?

"आप ही ने तो बनाई ये हमारी हालत,
इस तरह आप ही अब हाल न हमसे पूछो.."
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2015 at 8:55am

आ० भाई जयनितजा बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है . आ० भाई गिरिराज जी के सुझाव पर गौर करते हुए एक संभावित हल सुझा रहा हूँ अन्यथा न लें.यह  दोष  एक ही संज्ञा के लिए अलग अलग सर्वनाम का प्रयोग होने पर होता है ...

आप  ही से तो  हुई  है ये  हमारी   हालत

इस तरह  आ के  नया   हाल  न  हमसे  पूछो।....

Comment by जयनित कुमार मेहता on December 5, 2015 at 8:52pm
ग़ज़ल की सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका, आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।

मुझे तो इस दोष के बारे में बिलकुल ज्ञान ही नहीं है। रदीफ़ "न हमसे पूछो" है, तो फिर शेर में मुझसे कैसे लिखा जाय?? कृपया आप ही कोई हल बताएं!!सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2015 at 8:44pm

आदरणीय अच्छी गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें

इस शे र मे ऐबे  शुतुरगुरबा है , देख लीजियेगा  --

उला मे  तेरे और मेरी  के साथ सानी में  तू  और मुझसे लेना चाहिये था ।

तेरे  कारण  हुई  है, ये  जो  मेरी  हालत  है,

अब  तुम्हीं  आके  मेरा  हाल  न  हमसे  पूछो।

Comment by जयनित कुमार मेहता on December 5, 2015 at 6:03pm
ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 5, 2015 at 10:46am
मज़ा आ गया। दिल मांगे और !!! बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी।

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