For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज हमें होश में आने का नहीं -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

2122-- 1122 --1122 --112

 

इस तरह आज हमें होश में आने का नहीं

मुफ्त आई है मगर यार पिलाने का नहीं

 

सिर्फ रोता हुआ हर गीत सुनाने का नहीं

जिंदगी नाम है जीने का, चलाने का नहीं

 

तुमको मंगता है उजाला तो सितारों से कहो

रौशनी को, मेरे घर आग लगाने का नहीं

 

देख बिगड़ी हुई सूरत को, कहा दरपन ने

फिर कभी भीड़ में यूँ आँख दबाने का नहीं

 

यार गुस्से से पिघल जाए तो ये अच्छा है  

आँसुओं से कभी ये जुल्म गलाने का नहीं 

 

तुमको सक्सेस जो होने का तो कुछ काम करो

सिर्फ अल्लाह से इक आस लगाने का नहीं

 

गंध हो जिसमें किसी के लहू की फैली हुई

ऐसी दौलत को कभी हाथ लगाने का नहीं

 

आज बेटी ने दिया आसरा तो मैं समझा

सिर्फ बेटों के लिए हाथ उठाने का नहीं

 

फैसला आज मेरे प्यार का ऐसे होगा

आज जाने का नहीं या कभी आने का नहीं

 

मेरा सपना था इसी प्लॉट पे घर करने का

सारी दुनिया से अलग गाँव बसाने का नहीं

 

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

 

Views: 753

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 3:06pm

आदरणीय समर कबीर जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 

आपने सही कहा ये भाव मेरी रचनाओं में आ जाता है. भाव स्थाई है बह्र के साथ जिस लय में बाहर आ जाए. ऐसा मेरे साथ कई बार होता है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 3:03pm

आदरणीय गोपाल सर, आपके आशीर्वचन सदैव मेरा उत्साह बढ़ाते है, 'अपुन' वाला सुझाव बहुत बढ़िया है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by Ravi Shukla on September 22, 2015 at 2:55pm

आदरणीय मिथिलेश जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है 

आज बेटी ने दिया आसरा तो मैं समझा

सिर्फ बेटों के लिए हाथ उठाने का नहीं        हमे ये शेर बहुत पसंद आया

मेरा सपना था इसी प्लॉट पे घर करने का

सारी दुनिया से अलग गाँव बसाने का नहीं .....इस ख्‍वाब को ताबीर मिले यही दुआ है वैसे

अपुन में मामले मेे शहरयार साहब का एक शेर याद आयेला है मौजू लगा तो लिख रयेला है भाई

घर की तामीर  तसव्‍वुर ही में हो सकती है

अपने नक्‍शे के मुत‍ाबिक ये जमी कुछ कम है :-)

इस ग़ज़ल पर दिल से दाद कबूल फरमाएं आदरणीय।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 1:27pm

आदरणीय आमोद जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 

//प्लाट:,सक्सेस ????
सर जी क्या इरादा है// 

बड़ा ही नेक हैं कुछ प्रचलित शब्दों के प्रयोग का प्रयास किया है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 1:16pm

आदरणीय श्याम नरेन् वर्मा जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 1:15pm

आदरणीय सुशील सरना सर, आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया सदैव मेरा मनोबल बढ़ाती है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद 

Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 12:21am

जब भी हो मूड में जो लोचा तो सिर्फ आदरणीय मिथिलेश जी की ग़ज़ल सुनाने का भाई , फ्रेश हो जाते है।  मन दंग हो उठता है।  बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है। बधाई !

Comment by Samar kabeer on September 21, 2015 at 11:31pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

"सिर्फ़ बेटे के लिये हाथ उठाने का नहीं"

ये मिसरा सुन कर पता नहीं मुझे क्यूँ ये ख़याल आ रहा है कि ये भाव आपकी किसी दूसरी ग़ज़ल में भी है,ये मेरा भ्रम है या...?
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 21, 2015 at 8:57pm

बेहतरीन  गजल आप पर छाता जा रहा है ---- एक गुस्ताखी ---

इस तरह आज अपुन  होश में आने का नहीं

Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 21, 2015 at 6:55pm
प्लाट:,सक्सेस ????
सर जी क्या इरादा है

सर बेहद सुन्दर लगी क्यों की जो शेर आप ने कहे सभी मुद्दे पर है
भाव भी उम्दा लगे
बाकि तो गुरुजन जाने....

बधाई नमन

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service