(2122 1212 22)
आसमां तक वही गया होगा..
हो के बेख़ौफ़ जो उड़ा होगा..
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राह तू जब तलक निकालेगा,
सूर्य तब तक तो ढल चुका होगा..
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साँच को आंच ना कभी आती,
ये भी तुम ने कहीं सुना होगा..
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हम नज़र किस तरह मिलायेंगे,
जब कभी उन से सामना होगा..
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राह ईमान की चुने ही क्यों,
कौन तुमसे बड़ा गधा होगा..
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ठोकरें ना गिरा सकीं उस को,
शख़्स तूफां में वो पला होगा..
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देख लो कर के प्यार का सौदा,
रात-दिन चौगुना नफ़ा होगा..
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--जयनित--
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद..
आदरणीय जयनित भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , सभी अशआर सुन्दर हुये हैं , आपको दिली बधाइयाँ ।
हम नज़र किस तरह मिलायेंगे,
जब कभी उन से सामना होगा.
ठोकरें ना गिरा सकीं उस को,
शख़्स तूफां में वो पला होगा..
वाह! बेहतरीन...हार्दिक बधाई!
अच्छा प्रयास है आदरणीय जयनित जी, दाद कुबुलें
बढ़िया प्रस्तुति, छोटी बह्र में बढ़िया शेर निकाले है आपने. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई
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