मेरे शानों पे .....
साँझ होते ही मेरे तसव्वुर में
तेरी बेपनाह यादें
अपने हाथों में तूलिका लिए
मेरी ख़ल्वत के कैनवास पर
तैरती शून्यता में
अपना रंग भरने आ जाती हैं
रक्स करती
तेरी यादों के पाँव में
घुंघरू बाँध
अपने अस्तित्व का
अहसास करा जाती हैं
मेरी रूह की तिश्नगी को
अपनी दूरी से
और बढ़ा जाती हैं
मेरे अश्क
मेरी पलकों की दहलीज़ पे
चहलकदमी करने लगते हैं
न जाने कब
सियाह तारीक को चीरता
तेरी याद का जुगनू
मेरे सिरहाने तू बन कर
तमाम शब मुझसे बतियाता है
फिर मेरे चहरे पे
तेरी बेपरवाह ज़ुल्फ़ों के भूले स्पर्श को
इक सांस दे जाता है
सोयी तड़प को
नया आगाज़ दे जाता है
मैं अपने अंधेरों में
ग़ुम हो जाता हूँ
ख़ुद को ख़ुद से जुदा पाता हूँ
मगर चाह कर भी
खुद को तुझसे जुदा कहाँ कर पाता हूँ
मेरी नींदें भी
मुझसे अदावत कर बैठी हैं
आगोश में न लेने की
ख़िलाफ़त कर बैठी हैं
नर्म आरिज़ों की वो गर्मीं
मेरी शबों को तपिश देती है
तेरी यादों का सैलाब
मेरी आँखों को सुर्ख कर जाता है
हर करवट तू मेरे साथ होती है
आज भी
मेरे शानों पे तेरी याद
सिर रख के सोती है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
अय हय !
भावों को दिल से शब्दों में उकेर दिया आपने आदरणीय.. बहुत खूब !
शुभ-शुभ
आदरणीय मिथिलेश जी रचना पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति ने मेरे सृजन कर्म को जो मान दिया है उसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय हर्ष महाजन जी रचना पर आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से मेरे सृजन बल मिला है।आपका तहे दिल से शुक्रिया।
"
मेरे अश्क
मेरी पलकों की दहलीज़ पे
चहलकदमी करने लगते हैं
न जाने कब
सियाह तारीक को चीरता
तेरी याद का जुगनू
मेरे सिरहाने तू बन कर
तमाम शब मुझसे बतियाता है
फिर मेरे चहरे पे
तेरी बेपरवाह ज़ुल्फ़ों के भूले स्पर्श को
इक सांस दे जाता है
सोयी तड़प को
नया आगाज़ दे जाता है"....वाह बहुत ही मर्म लिए आपकी नज़्म में दिल में उतरती हुई...बहुत बहुत बधाई आदरणीय Sushil Sarna जी !!! सादर !!!
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