For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यादों के दरीचों में .....

यादों के दरीचों में .....

सच, तुम्हारी कसम
उस वक्त तुम बहुत याद आये थे
जब सावन की पहली बूँद
मेरी ज़ुल्फ़ों से झगड़ा करके
मेरे रुखसारों पर
फिसलने की ज़िद करने लगी
सबा को भी उस वक्त
मेरी ज़ुल्फ़ों से
छेड़खानी करने की ज़िद थी
इस छेड़खानी में कभी बूंदें
रेतीली ज़मीन पर गिर कर
अपना अस्तित्व खो देती थी
तो कभी पलकों की चिलमन पर
सज के बैठ जाती थी
कभी हौले से
रुख़्सार पर फिसलती हुई
मेरी ठोडी पर
किसी को प्यार के निमंत्रण का
आग्रह कर रुक जाती थी
ऎसे में सच ,
उफ्फ तुम्हारा वो स्पर्श
वो ठोडी पर रुकी बूँद को
उंगली के पोर पर लेकर
अपने अधरों पर उसे पनाह देना
आज भी मेरे जिस्म में
सिहरन भर देता है
मैं आज तक
उसी मखमली अहसास से बंधी हूँ
हर पल
बादलों की राह तकती हूँ
कि शायद फिर कोई बूँद
मेरे रुखसारों पे
फिसलने की ज़िद करे
और तुम
चुपके से मेरे अहसास में
अपने स्पर्श का रंग भर जाओ
सच मानो
जब जब आकाश में
बादल छाते हैं
तुम याद बहुत आते हो
मेरी यादों के दरीचों में
अपना अहसास छोड़ जाते हो

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 454

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on September 8, 2015 at 12:12pm

आदरणीय   shree suneel   जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by shree suneel on September 7, 2015 at 7:08pm
भावनाओं से भरी इस ख़ूबसूरत कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई आपको आदरणीय. कुछ ख़ास लफ्ज़ो नें तो भाव को और गहराई दी है.
जब जब आकाश में
बादल छाते हैं
तुम याद बहुत आते हो. ... जी हाँ

और बादलों के साये में भी आदरणीय...
पुनः बधाई इस प्रस्तुति पर. सादर.
Comment by Sushil Sarna on September 7, 2015 at 7:06pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 6, 2015 at 9:11pm

आदरनीय सुशील भाई , विरह मे यादों को सुन्दर शब्द दिये है ! आपको दिली बधाइयाँ ।

Comment by Sushil Sarna on September 6, 2015 at 8:46pm

आदरणीय  मनोज  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on September 6, 2015 at 8:45pm

आदरणीया  प्रतिभा जी रचना पर आपकी मनभावन  प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on September 6, 2015 at 8:44pm

आदरणीय मिथिलेश जी रचना पर आपकी मन मुदित करने वाली प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by मनोज अहसास on September 6, 2015 at 10:41am
बहुत बहुत बहुत खूबसूरत
सादर बधाई
Comment by pratibha pande on September 6, 2015 at 9:53am

बादलों की राह तकती हूँ 
कि शायद फिर कोई बूँद 
मेरे रुखसारों पे 
फिसलने की ज़िद करे

बहुत ही खूबसूरत रचना आदरणीय सुशील जी ,बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 9:03pm

आदरणीय सुशील सरना सर बहुत ही भावपूर्ण रचना की प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service