For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चाय पिला पिला कर ,
लोगो की सेवा वो करता रहा,
महज़ चार चाय की कीमत पर ,
मालिक उसको छलता रहा,
भूखी अंतड़िया ,
क्या जाने चाय की तलब ,
दो रोटियां, चोखे संग,
पाने को पेट जलता रहा ,
बैठे चायखाने मे
खादी पहने
कुछ उच्च शिक्षित लोगों के मध्य
"बाल मजदूरी ठीक नहीं",
यही मुद्दा चलता रहा ,
कैसे रोके , कैसे टोके ,
सरकार अपनी है निकम्मी,
बातो बातो में
राजनीतिक विवादों में
घंटो निकलता रहा,
फिर चाय की तलब लगी,
तो छोटू की पुकार हुई,
एक बार फिर कड़क चाय पिलाना,
चाय पिला कर सारा दिन छोटू,                                                                                             (चित्र गुगल से साभार)
जूठे बर्तन घिसता रहा,

(मैं बहुत बहुत आभारी हू भाई श्री राणा प्रताप जी का जिनके सहयोग से मैं यह कविता लिख सका हू|)

Views: 10428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 12, 2010 at 6:04pm
सभी मित्रों को स्पष्ट करना चाहूँगा कि इस कविता को लिखने में मेरा शून्य से भी कम योगदान है.जो भी विचार एवं विन्यास है सब श्री गणेश जी "बागी" भैया के ही हैं. यह तो उनका बड़प्पन है कि उन्होंने मेरा नाम यहाँ पर लिख दिया है.......
Comment by sunil pandey on June 12, 2010 at 5:41pm
bahut bandhiya sir. ek dam heart touching our samaj ki sachai batane wali kavita hai ye..
Comment by Biresh kumar on June 12, 2010 at 4:59pm
लोगो की सेवा वो करता रहा,
महज़ चार चाय की कीमत पर ,
kia baat kia baat

kiaa baat
i cant comment in words this poem is like....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 12, 2010 at 4:42pm
Mainey sudharney ka paryash kiya hai Sampadak jee, Dekh lijiyeyga,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 12, 2010 at 4:21pm
बाग़ी भाई, राणा जी के हाथ से होकर निकली आपकी यह कविता बहुत सुंदर है ! आपने बडे मर्मस्पर्शी ढंग से बात कही है और साथ ही हमारे समाज की असंवेदनशीलता को भी इस कविता के माध्यम से बखूबी उजागर किया है, जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं ! लेकिन सब से आखरी पंक्ति पर एक बार दोबारा नजर डालिए:
//जूठे बर्तन धुलता रहा,//
यह व्याकरण की दृष्टि से सही नहीं है !
Comment by Chhavi Chaurasia on June 12, 2010 at 3:38pm
क्या बात है गणेश जी, छोटू के हालत पर बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने. ओपन बुक्स पर ऐसी रचना लिखने के लिए धन्यवाद .
Comment by guddo dadi on June 12, 2010 at 3:38pm
बच्चे कल के माता पिता नेता चाचा नेहरु के दुलारे ,भूख के मारे
कवि श्यामालसुमन जी की पंक्तियाँ
उदर भरण का कर्म कहें ,या प्राणों का बलिदान कहें
बर्बरता के क्रूर चरण या सांसों का उत्थान कहें
एक मिटे तो दूजा पनपे पाप पुण्य बेमानी है
जिसकी लाठी भैंस उसी की, जग की यही कहानी है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
11 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
34 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service