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ग़ज़ल :- थक गया मैं

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा

समझा समझा कर हरजाई थक गया मैं
दुनिया फिर भी समझ न पाई थक गया मैं

मेरे घर में पाँव न रक्खा ख़ुशियों ने
बजा बजा कर ये शहनाई थक गया मैं

पूरा करते करते सात सवालों को
कहता है अब हातिम ताई थक गया मैं

जाहिल आक़िल को तस्लीम नहीं करते
करते करते उनसे लड़ाई थक गया मैं

मेरी बुराई करते करते आज तलक
थक न पाई सारी ख़ुदाई थक गया मैं

मैंने सबसे मिलना जुलना छोड़ दिया
दरवाज़े पर लिख दो भाई थक गया मैं

मिहनत मज़दूरी से पेट नहीं भरता
सहते सहते ये मँहगाई थक गया मैं

देखो मेरा हाथ "समर" के सर पर है
सच कहता हूँ 'सौरभ' भाई थक गया मैं

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by दिनेश कुमार on September 6, 2015 at 7:37am

बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिल से दाद क़बूल करें आदरणीय कबीर सर। हर शे'र बहुत अच्छा हुआ है। वाह वाह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 8:45pm

आदरणीय समर कबीर जी, आपकी ग़ज़ल का अंदाज़ दिल लूट लेता है. हर बार कमाल उस्ताद ही करते है. एक बेहतरीन और कठिन रदीफ़ पर ऐसे बढ़िया शेर निकलते तो बस मुग्ध ही हुआ जा सकता है. वाह ..... दिल से दाद ही दाद ....

Comment by मनोज अहसास on September 5, 2015 at 3:38pm
मेरे दरवाज़े पर दस्तक कोई न दे
तख़्ती पर ये लिख दो भाई थक गया मैं

बहुत खूब सर
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई
शुभकामना
सादर

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