For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंगूठी (लघु कथा ) ....

अंगूठी (लघु कथा )

'नहीं,नहीं … देखो अब इस घर में रहना शायद मुमकिन नहीं है। 'रेनू ने गुस्से में अपने पति रणधीर से कहा और बैग में अपने कपड़ों को रखने लगी। ''दीपू चलो अपने खिलोने उठाओ और अपने बैग में रखो। ''रेनू ने अपने सात साल के बेटे को करीब करीब डांटते हुए कहा। दीपू भौंचका सा डर कर अपने पापा की तरफ देखकर अपने खिलौने बैग में रखने लगा। ''देखो रेनू ! यूँ छोटी छोटी बातों पर रूठ कर ज़िंदगी के बड़े फैसले नहीं लिए जाते। क्या हुआ अगर मम्मी ने तुम्हें बर्तन साफ़ करने के लिए कह दिया। उनकी ओल्ड ऐज है। थकी हुई हैं। उन्हें सहारे की जरूरत है। बड़ा भाई दिल्ली रहता है। हमारे अलावा उनका कौन है। इतनी सी बात के लिए नाराज़ होकर घर छोड़ने का फैसला लेना उचित नहीं है।'' '' मैं रोज रोज डांट नहीं खा सकती। मैं अपने बच्चे को पीहर ले जाऊँगी और वहीं नौकरी करूंगी और दीपू को पढ़ाऊँगी। ''रेनू के क्रोध की ज्वाला शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी। रणधीर के लाख समझाने के बावज़ूद वो अपनी अपनी ज़िद पर अडिग थी। रणधीर के पिता ने भी बहुत समझाया कि घर छोड़ने का हठ छोड़ दो बेटी। ज़िंदगी का मज़ाक मत बनाओ। दो परिवार, मासूम बच्चा और तुम्हारी शादी शुदा ज़िंदगी सिर्फ नारी हठ की भेंट चढ़ जाएंगे। मगर त्रिया हठ के आगे किसी की भी न चली। शादी के पावन रिश्ते की निशानी सगाई की अंगूठी रेनू ने आईने के सामने रख कर कहा ''मैं कुछ भी अपने साथ नहीं ले जा रही हूँ। '' टैक्सी मंगवाई और दीपू के संग उसमें बैठकर अपने निर्णय को कार्य रूप दे दिया। मासूम दीपू की आँख से गिरा पानी चार माह के अंतराल के बाद भी रणधीर अपनी आँख में समेटे था। आईने पर पडी अंगूठी सात जन्मों के रिश्ते पर कहकहे लगा रही थी। रणवीर सोचने लगा कि अग्नि के चारों ओर विवाह के फेरे लेते वक्त पंडित ने सुखी वैवाहिक जीवन के लिए जो मंत्रोचार किया था क्या वो सब मिथ्या था ? क्या सब वैदिक मन्त्र मात्र दिखावा हैं ? ये मन्त्र तो लगता है सात जन्मों के गठबंधन की गारंटी तो छोड़ो शायद सात क़दम साथ चलने की गारंटी भी नहीं देते। जब तक मन में एक दूसरे के लिए समर्पण भाव न हो तब तक कोई भी पावन अग्नि , कोई भी मन्त्र विवाह के रिश्ते को अमर नहीं बना सकता। आईनें पर पडी अंगूठी ने अटूट कहे जाने वाले वैवाहिक जीवन की परिभाषा को डगमगा दिया।

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 751

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on September 3, 2015 at 12:58pm

आदरणीया जितेन्द्र पस्टारिया जी लघुकथा के मर्म और आपकी आत्मीय प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। काफी समय के बाद मेरी रचना पर आपके आगमन से हृदय हर्षित है। हार्दिक आभार। 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 2, 2015 at 9:53pm

बहुत ही अच्छे विषय पर ,सुंदर लघुकथा साझा की आदरणीय सरना साहब. रिश्तों में आतुरता या दूर तक बिन सोचे लिए फैसले ही इन समस्यायों का कारण है. वरना रिश्ते तो रिश्ते होते है ,जो कभी तोड़े से भी नहीं टूटते. प्रस्तुति पर बधाई आपको

Comment by Sushil Sarna on September 2, 2015 at 12:26pm

आदरणीय रवि प्रभाकर जी कथा मर्म आप की स्वीकृति ने मेरी सृजन शक्ति को बल दिया है। आपकी गहन समीक्षा और सुझाव मेरे भावी सृजन के लिए अमूल्य हैं। करत करत अभ्यास ते जड़मति होती सुजान … हा हा हा .... हमजैसे जड़मति वालों को आपका पथप्रदर्शन अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सदा सहायक रहेगा।
आपकी इस समीक्षात्मक एवं प्रशंसात्मक प्रतिक्रिय का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Ravi Prabhakar on September 2, 2015 at 9:01am

आदरणीय सुशील सरना जी लघुकथा एक लेखकविहीन विधा है अर्थात् लघुकथा में लेखक की स्‍थूल उपस्‍थिती वर्जित है /रणवीर सोचने लगा कि अग्नि के चारों ओर विवाह के फेरे लेते वक्त पंडित ने सुखी वैवाहिक जीवन के लिए जो मंत्रोचार किया था क्या वो सब मिथ्या था ? क्या सब वैदिक मन्त्र मात्र दिखावा हैं ? ये मन्त्र तो लगता है सात जन्मों के गठबंधन की गारंटी तो छोड़ो शायद सात क़दम साथ चलने की गारंटी भी नहीं देते। जब तक मन में एक दूसरे के लिए समर्पण भाव न हो तब तक कोई भी पावन अग्नि , कोई भी मन्त्र विवाह के रिश्ते को अमर नहीं बना सकता।/ इन पंक्‍ितयाें में लेखक की उपस्‍िथती ने लघुकथा को कमजोर बना दिया है।

आपने  सभी पंक्‍ितयां एक साथ एक ही पैराग्रॉफ में लिख डालीं है जिसकी वजह से कथा संप्रेषणीय नहीं बन पाई । यदि वार्तालाप को इन्‍वर्टड कौमास के साथ ऐंटर लगा कर लिखा जाता तो बहुत अच्‍छा होता । बहरहाल आपकी कथा का कथानक बहुत प्रभावशाली है, सादर शुभकामनाएं ।

Comment by Sushil Sarna on September 1, 2015 at 5:42pm

आदरणीया अर्चना जी लघुकथा के मर्म और आपकी आत्मीय प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by Archana Tripathi on September 1, 2015 at 4:01pm
बहुत ही उत्तम लघुकथा लिखी हैं आपने आदरणीय Sunil Sarna जी हार्दिक बधाई आपको , आज हम क्रोध और जल्दीबाजी में किसी भी कदम को उठाने से नहीं चूकते।भविष्य में उसका चाहे परिणाम विपरीत ही क्यों न हो।सारण
Comment by Sushil Sarna on September 1, 2015 at 12:55pm

आदरणीय  pratibha pande जी लघु कथा पर आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by pratibha pande on September 1, 2015 at 9:14am
छोटी छोटी बातों में तुनकमिजाजी आज के युवाओं की ख़ास पहचान बन गया है, पर ये आदत जब रिश्तों को भी दांव पर लगा देती है तो समस्या क्या रूप ले सकती है ,ये सत्य आपकी इस रचना ने बहुत अच्छी तरह बयाँ किया है बधाई आपको इस सफल रचना के लिए आदरणीय सुशील सरना जी
Comment by Sushil Sarna on August 31, 2015 at 7:05pm

आदरणीय मिथिलेश जी लघु कथा पर आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 31, 2015 at 5:14pm

आदरणीया सुशील सरना सर, बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service