1222---1222---1222-1222 |
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सटक ले तू अभी मामू किधर खैरात करने का |
नहीं है बाटली फिर क्या इधर कू रात करने का |
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पुअर है पण नहीं वाजिब उसे अब चोर बोले तुम |
न यूं रैपट लगा मामू कि पहले बात करने का |
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मगज में कोई लोचा है मुहब्बत हो गई तुमको |
तुरत इकरार की खातिर उधर जज्बात करने का |
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धरम के नाम, अक्खा दिन नवें ड्रामें करे नल्ला |
इसे बॉर्डर पे ले जाके, वहीं तैनात करने का |
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उधम करता है जो हलकट भगाने का उसे भीड़ू |
सिटी का पीस वाला फिर अगर हालात करने का |
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कोई शाणा करे लफड़ा, तो दे कण्टाप पे लाफ़ा |
कोई वांदा नहीं साला जिगर इस्पात करने का |
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बहुत येड़ा हुआ बादल, सदाइच झोल करता रे |
अपुन बोला मेरे भगवन नहीं बरसात करने का |
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बुरा टाइम भी हो तेरा मगर सब मामले सुलटा |
अगर लाइफ जरा राप्चिक नवीं औकात करने का |
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Comment
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,आज मैं आपका ये हुनर देखकर हक्का बक्का रह गया ,बाज़ारी ज़बान को आपने कितनी ख़ूबसूरती के साथ ग़ज़ल के पैकर में ढाल दिया ,इस सिन्फ़-ए-सुख़न को (विधा) उर्दू में "हज़ल" कहते हैं,और आपने इस सिन्फ़-ए-सुख़न का हक़ अदा कर दिया,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
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