221 2121 1221 212 |
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अपनी ख़ुशी उछाल के बिजली के तार पर |
रौशन किया है देखिये घर जोरदार पर |
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आसान लग रहा है अगर तै सफ़र मियां |
तो जिंदगी ये आपकी समझो उतार पर |
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अब कुछ नहीं तो तज्रिबा हासिल हुआ हमें |
जोखिम उठा के जो किया बोसा कटार पर |
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रंगों ने सादगी को जो रंगीन कर दिया |
तो सादगी से रंग भी आये निखार पर |
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तुमको हुनर मिला है ये उसका ही है फज़ल |
फनकारियां हुई है उसी के उधार पर |
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रखना जुबान पाक, ये मुमकिन है फिर कभी |
वापिस वही मिलेगी तेरी हर पुकार पर |
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इक बार में कुबूल न हो पाई जो दुआ |
अपने दिए को यार रखो फिर मज़ार पर |
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जो सुन रहा है आज तरन्नुम भी शोर में |
होगी नई मिसाल उसी खाकसार पर |
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‘वादा लिया कि ख़्वाब, हकीक़त करोगे तुम’ |
यूं बोझ रख दिया है किसी होनहार पर |
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मज़हब अलग-अलग है इबादत अलग-अलग |
सुन लो सभी का एक है परवरदिगार पर |
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हर एक शै जो आज अदीबों को दिख रही |
कल ये जहां करेगा अमल उस्तुवार पर |
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परवाज़ है बुलंद मगर देखिये जरा |
आता है लौट कर वो परिन्दा दयार पर |
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Comment
आदरणीय आमोद जी हार्दिक आभार
आदरणीय मिथिलेश जी
आपकी ग़ज़ल के माधुर्य के लिये और सभी अश्आर के लिये दिली दाद कुबूल करें आदरणीया राजेश जी और आदरणीय गिरिराज जी के सुझावसे लय और भी निखर रही है । केवल एक निवेदन हमारा है
शोर में तनन्नुम सुनना और शोर मे तनन्नुम भी सुनना दो अलग अलग सामर्थ्य की बात है आप इसे कैसे लेते है यह आप पर निर्भर है ।
आदरणीय मिथिलेश भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ कुबूल कीजिये ।
आदरणीया राजेश जी की सलाह उचित है , ख्याल कीजियेगा । इसके साथ ही अगर आपको अच्छा लगे तो -
आसान लग रहा है अगर तै सफ़र मियां
तो जिंदगी ये आपकी समझो उतार पर --- तो जिंदगी को आप समझ लें उतार पर - ऐसा कर सकते हैं
आ० मिथिलेश भाई, सुन्दर गजल हुई है हार्दिक बधाई .आ० राजेश बहन की बात से में भी सहमत हूँ ये दोनों शेर कुछ और समय चाहते हैं .ऐसा मुझे भी लगता है . शेष शुभ शुभ ......
मिथिलेश भैया इसमें कोई शक नहीं की ग़ज़ल हर बार को तरह शानदार है हर शेर उम्दा है किन्तु इन मिसरों में मुझे आपकी कुछ जल्दी बाजी झलक रही है ---जैसे इक बार में कुबूल जो नहीं हुई दुआ-----इक बार में कुबूल न हो पाई जो दुआ--कर सकते हैं |
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अपने दिए को यार रखो फिर मज़ार पर |
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जो सुन रहा है शोर में भी आज तरन्नुम-----जो सुन रहा है आज तरन्नुम भी शोर में ----करके देखिये परवाज़ है बुलंद मगर देख परिन्दा----परिंदा शायद १२२ होता है आपने २१२ में बाँधा है इस पर संशय है -------------------------------------------परवाज है बुलंद मगर देखिये जरा ,
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