अतुकांत - दवा स्वाद में मीठी जो है
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मोमबत्तियाँ उजाला देतीं है
अगर एक साथ जलाईं जायें बहुत सी
तो , आनुपातिक ज़ियादा उजाला देतीं हैं
कभी इतना कि आपकी सूरत भी दिखाई देने लगे
दुनिया को
लेकिन आपको ये जानना चाहिये कि ,
इस उजाले की पहुँच बाहरी है
किसी के अन्दर फैले अन्धेरों तक पहुँच नही है इनकी
भ्रम में न रहें
कानून अगर सही सही पाले जायें
तो, ये व्यवस्था देते हैं
भय देते हैं , तोड़े जाने से सजा का
शारीरिक कष्टों का भय
लेकिन ,
समरथ के लिये तो गोसाईं जी ने कह ही दिया है
आप भ्रम में न रहें
लेकिन आपको जानना चाहिये कि ,
इनकी पहुँच आपकी सोच तक नहीं है ,
संस्कारों तक तो और भी नहीं
आज़ादी एक ज़हरीली दवा है
स्वाद में अच्छी है
मात्रा संतुलित हो तो फायदा भी बहुत करती है
असंतुलन के नुक्सान भी हैं
मै चाहता हूँ दवा फायदा करे
लेकिन कैसे ?
दवा स्वाद में मीठी जो है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
बहुत खूब आदरणीय
मोमबत्तियाँ उजाला देतीं है
अगर एक साथ जलाईं जायें बहुत सी
तो , आनुपातिक ज़ियादा उजाला देतीं हैं
कभी इतना कि आपकी सूरत भी दिखाई देने लगे
दुनिया को
बहुत खूब
गहरे प्रशन एवं दार्शनिक रंग लिये बढ़िया प्रस्तुति के लिये बधाई ...सादर
आदरणीय गिरिराज सर बहुत ही उम्दा कविता हुई है.हार्दिक बधाई निवेदित है. समरथ को नहीं दोष गुसाई को बड़ी ही अच्छी तरह प्रयोग किया है
एक विचार आया है, अतुकांत का शिल्प बिलकुल नहीं जानता फिर भी विचार आ गया तो साझा कर रहा हूँ -
कानून अगर सही सही पाले जायें
तो, ये व्यवस्था देते हैं
भय देते हैं , तोड़े जाने से सजा का ----------> भय देते है, तोड़े जायें तो सजा का
शारीरिक कष्टों का भय
ये पंक्तियाँ कमाल की हुई है-
आज़ादी एक ज़हरीली दवा है
स्वाद में अच्छी है
मात्रा संतुलित हो तो फायदा भी बहुत करती है
असंतुलन के नुक्सान भी हैं
मै चाहता हूँ दवा फायदा करे
लेकिन कैसे ?
दवा स्वाद में मीठी जो है
आदरणीय गिरिराज भाई साहब, आदरणीय डॉ विजय शंकर जी की विवेचनात्मक टिप्पणी के पश्चात कहने के लिए बहुत कुछ नहीं रह जाता, मैं आपकी इस प्रस्तुति पर बधाई प्रेषित करने के साथ साथ डॉ विजय शंकर जी की पाठकधर्मिता को नमन करता हूँ.
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