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चेहरे पे चेहरा ( लघुकथा )

स्त्री का सम्मान , आजादी और शिक्षा के लिए भरपूर प्रयास करने जैसी ढेरों आदर्श वादी बातों से प्रभावित स्नेहा लेक्चरर साहब घर जा पहुंची।
दस्तक से पूर्व ही कर्कश आवाज " खबरदार बिना मेरी अनुमति के कोई परिवर्तन किया तो लात मार घर से निकाल दूंगा I"

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 11:47pm
शुक्रिया Saurabh Pandey जी ,आभार आपका

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 27, 2015 at 11:42pm

प्रस्तुति में हालाँकि नयापन नहीं है किन्तु यह विषय वस्तुतः झकझोरता है. सामाजिक और वैयक्तिक आचरण भिन्न हों तो बात खुलने पर आश्वस्त हो चले सुप्रेरित लोगों को झटके लगने स्वाभाविक हैं.

बढिया प्रयास हुआ है. अभ्यासकर्म सतत बना रहे, आदरणीया

Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 11:35pm
शिज्जु "शकूर जी और Krishana mishra 'jaan' gorakhpuri ji हो सके तो मार्गदर्शन कीजिये।सदैव आभारी रहूंगी ।
Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 11:30pm
शुक्रिया अमन कुमार जी ,आभार
Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 11:28pm
आभारी हूँ मिथिलेश वामनकर जी ,रचना को अमूल्य समय देने के लिए आभारी हूँ
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 26, 2015 at 4:28pm

आदरणीय शिज्जू सर की बात से सहमत हूँ,लघुकथा थोड़ा और समय माँग रही है

>>स्नेहा लेक्चरर साहब घर जा पहुंची।  या फिर >>> स्नेहा लेक्चरर साहब के  घर जा पहुंची।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 26, 2015 at 9:23am

अर्चना जी एक अधूरापन सा लग रहा है आपकी इस लघुकथा में, हालाँकि लघुकथा का मर्म क्या है वो समझ में आ रहा है पर ये लघुकथा थोड़ा और समय माँग रही है

Comment by aman kumar on April 25, 2015 at 1:59pm

हाथी के दाँत खाने के अलग और दिखने मे अलग ....

सच्चाई ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 24, 2015 at 5:00pm

आदरणीया अर्चना जी सफल लघुकथा हुई है . इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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