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बदली ने टांग अपनी अड़ाई हुई तो है
सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है
कहने लगे हैं नक़्श हरिक शक्ल के यही
चक्की में ज़िन्दगी की पिसाई हुई तो है
बातों में तेवरी है बग़ावत की, मान ली
लेकिन जो सच थी बात, उठाई हुई तो है
देखें कि घर में रोशनी आती है कब तलक
तारीकियों के संग लड़ाई हुई तो है
सद शुक्र, ऐ तबीब दवा और मत लगा
उनकी हथेलियों से सिकाई हुई तो है
माना कि, फौज आज खड़ी सरहदों पे , पर
दुश्मन के साथ थोड़ी ढिलाई हुई तो है
हिलता नहीं जो संगे ग़रीबी तो क्या ग़लत
सरकार खुद पसीना नहाई हुई तो है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय महर्षि भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ॥
बहुत बहुत शुक्रिया , आदरणीय समर कबीर भाई , आपकी उपस्थिति से गज़ल और निखर गई । आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
नूकूश वाले शे र को मैने इसी पेज मे नीचे सुधार कर लिखा था , शायद आपकी नज़र नहीं पड़ी , आपका सुधारा हुआ भी बहुर सुन्दर है । दोनो मे से किसे चुनूँ , आप बताइयेगा , बिना झिझक !! अपना सुधारा हुआ फिर से यहीं लिख रहा हूँ --
नक्शा बता रहा है हरिक शक़्ल का यही या - "कहने लगे हैं नक़्श हरिक शक्ल के यही"
चक्की में ज़िन्दगी की पिसाई हुई तो है
आपका फिर से शुक्रिया ॥
इस खुबसूरत गजल पर आपको ,,,ढेरो बधाई आ,गिरिराज भंडारी सर ,,,,सभी शेर काबिले तारीफ हैं |
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
आ. पाठकों से अनुरोध है कि , गज़ल के दूसरे शे र को निम्न अनुसार पढ़ने की कृपा करें ---
नक्शा बता रहा है हरिक शक़्ल का यही
चक्की में ज़िन्दगी की पिसाई हुई तो है
आदरणीय श्याम भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय मिथिलेश भाई , गज़ल पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख बहुत अच्छा लगा ! आपको अशआर पसंद आये तो मेहनत सार्थक हुई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरनीय कृष्णा भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
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