गजल लिखने का प्रयास मात्र है, कृपया सुधारात्मक टिप्पणी से अनुग्रहीत करें
अंदर अंदर रोता हूँ मैं, ऊपर से मुस्काता हूँ,
दर्द में भीगे स्वर हैं मेरे, गीत खुशी के गाता हूँ.
आश लगाये बैठा हूँ मैं, अच्छे दिन अब आएंगे,
करता हूँ मैं सर्विस फिर भी, सर्विस टैक्स चुकाता हूँ.
राम रहीम अल्ला के बन्दे, फर्क नहीं मुझको दिखता,
सबके अंदर एक रूह, फिर किसका खून बहाता हूँ.
रस्ते सबके अलग अलग है, मंजिल लेकिन एक वही,
सेवा करके दीन दुखी का, राह खुदा का पाता हूँ.
हिंसा करना, शोर मचाना, ऐसी भी कोई पूजा है
प्रेम तत्व को खुद न समझा, औरों को समझाता हूँ.
तेरा मेरा उसका सबका, भेद बहुत ही है गहरा
इन भेदों से ऊपर उठकर, अखिल विश्व पा जाता हूँ
(मौलिक व अप्रकाशित)
- जवाहर लाल सिंह
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्र जी
आदरणीय जवाहर लाल जी सरल शब्दों में बेहतरीन ग़ज़ल ..आपको हार्दिक बधाई सादर
आदरणीय मोहन सेठी जी, सादर अभिवादन! उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया और पंक्तियाँ चिह्नित करने के लिए अतिशय आभार!
आदरणीय समर कबीर साहब, अदाब! आपकी दाद मैं कबूल करता हूँ साथ ही आपके समर्थन के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ ..सादर!
बहुत ख़ूब आदरणीय .....बधाई ....सादर
राम रहीम अल्ला के बन्दे, फर्क नहीं मुझको दिखता,
सबके अंदर एक रूह, फिर किसका खून बहाता हूँ.
आदरणीय डॉ, विजय shankar जी, सादर अभिवादन! आपका उत्साह वर्धन मिलता रहे यही उम्मीद करता हूँ ..आगे मेरा प्रयास जरी रहेगा. सादर!
आदरणीय श्याम मठपाल जी, सादर अभिवादन! उत्साह वर्धन का आभार!
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब, सादर अभिवादन! आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया का आभार!
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, सादर अभिवादन!
उत्साह वर्धन का आभार!
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