मुखर्जी बाबू सेवा निवृत्ति के बाद इस बार दुर्गापूजा के समय बेटे रोहन के बार-बार आग्रह करने पर उसी के पास हैदराबाद में आ गए हैं। वैसे तो वे अपनी पत्नी के साथ भवानीपुर वाले मकान में ही रहते थे। रोहन, अपर्णा और बंटी के साथ हर-साल दुर्गा पूजा में अपने घर आते थे। वे लोग बाबा और माँ के लिए नए कपड़े आदि उपहार लेकर आते थे। मिठाइयां मुखर्जी बाबू खुद बाजार सेखरीदकर लाते थे। मिसेज मुखर्जी भी अपने पूरे परिवार के लिए घर में ही कुछ अच्छे-अच्छे सुस्वादु पकवान और मछली अपने हाथ से बनाती थी। उनकी बहू अपर्णा भी…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on October 17, 2021 at 10:30pm — 3 Comments
Added by JAWAHAR LAL SINGH on July 10, 2019 at 4:00pm — 2 Comments
बड़े लोग कहते रहे, जीतो काम व क्रोध.
पर ये तो आते रहे, जीवन के अवरोध.
माफी मांगो त्वरित ही, हो जाए अहसास.
होगे छोटे तुम नहीं, बिगड़े ना कुछ ख़ास.
क्रोध अगर आ जाय तो, चुप बैठो क्षण आप.
पल दो पल में हो असर, मिट जाएगा ताप .
रोकर देखो ही कभी, मन को मिलता चैन.
बीती बातें भूल जा, त्वरित सुधारो बैन .
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by JAWAHAR LAL SINGH on February 6, 2019 at 10:50pm — 6 Comments
अँखियों में अँखियाँ डूब गई,
अँखियों में बातें खूब हुई.
जो कह न सके थे अब तक वो,
दिल की ही बातें खूब हुई.
*
हमने न कभी कुछ चाहा था,
दुख हो, कब हमने चाहा था,
सुख में हम रंजिश होते थे,
दुख में भी साथ निबाहा था.
*
ऑंखें दर्पण सी होती है,
अन्दर क्या है कह देती है.
जब आँख मिली हम समझ गए,
बातें अमृत सी होती है.
*
आँखों में सपने होते हैं,
सपने अपने ही होते हैं,
आँखों में डूब जरा…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on August 22, 2016 at 7:00am — 16 Comments
देश में रहकर मुहब्बत, देश से करते चलो!
देश आगे बढ़ रहा है, तुम भी डग भरते चलो.
.
देश जो कि दब चुका था, आज सर ऊंचा हुआ है,
देश के निर्धन के घर में, गैस का चूल्हा जला है
उज्ज्वला की योजना से, स्वच्छ घर करते चलो.
देश में रहकर............
.
देश भारत का तिरंगा, हर तरफ लहरा रहा,
ऊंची ऊंची चोटियों पर, शान से फहरा रहा,
युगल हाथों से पकड़ अब, कर नमन बढ़ते चलो.
देश में रहकर............
.
देश मेरा हर तरफ से, शांत व आबाद…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on June 7, 2016 at 8:30am — 18 Comments
मेरे घर के पास है, एक खुला मैदान,
चार दिशा में पेड़ हैं, देते छाया दान
करते क्रीड़ा युवा हैं, मनरंजन भरपूर
कर लेते आराम भी, थक हो जाते चूर
सब्जी वाले भी यहाँ, बेंचे सब्जी साज.
गोभी, पालक, मूलियाँ, सस्ती ले लो आज…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on November 25, 2015 at 8:30pm — 4 Comments
नित्य करेला खाकर गुरु जी, मीठे बोल सुनाते हैं,
नीम पात को प्रात चबा बम, भोले का गुण गाते हैं.
उपरी छिलका फल अनार का, तीता जितना होता है
उस छिलके के अंदर दाने, मीठे रस को पाते हैं.
कोकिल गाती मुक्त कंठ से, आम्र मंजरी के ऊपर
काले काले भंवरे सारे, मस्ती में गुंजाते हैं.
कांटो मध्यहि कलियाँ पल कर, खिलती है मुस्काती है
पुष्प सुहाने मादक बनकर, भौंरों को ललचाते हैं.
भीषण गर्मी के आतप से, पानी कैसे भाप बने
भाप बने बादल जैसे ही, शीतल जल को लाते…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on August 4, 2015 at 9:00pm — 4 Comments
अपराधी सब एक हैं, धर्म कहाँ से आय|
सजा इन्हें कानून दे, करें न स्वयम उपाय||
कल तक जो थी मित्रता, आज न हमें सुहाय|
तूने छेड़ा है मुझे, अब खुद लियो बचाय||
सूनी सड़कें खौफ से, सायरन पुलिस बजाय|
बच्चे तरसे दूध को, माता छाती लगाय||
शहर कभी गुलजार था, धरम बीच क्यों आय|
कल तक जिससे प्यार था, फूटी आँख न भाय!!
पत्थर गोली गालियाँ, किसको भला सुहाय|
अमन चैन से सब रहें, फिर से गले लगाय ||
(मौलिक व अप्रकाशित)
जवाहर लाल सिंह
Added by JAWAHAR LAL SINGH on July 23, 2015 at 6:58pm — 7 Comments
शहर की रूमानियत, जाने कहाँ पर खो गयी
एक चिंगारी से गुलशन, खाक जलकर हो गयी
अजनबी से लग रहे हैं, जो कभी थे मित्रवत
रूह की रूमानियत, झटके में कैसे सो गयी
ख्याल रखना घर का मेरा, जा रहे हैं छोड़कर
सुन के उनकी बात जैसे, आत्मा भी रो गयी
सड़क सूनी, सूनी गलियां, बजते रहे थे सायरन
थे मुकम्मल कल तलक सब, आज ये क्या हो गयी
रब हैं सबके बन्दे उनके, एक होकर अब रहो
इस धरा को पाक रक्खो, साख सबकी खो गयी
(मौलिक व अप्रकाशित)
- जवाहर लाल…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on July 23, 2015 at 12:30pm — 4 Comments
‘शहर’ जो गुलजार था,
हाँ, धर्म का त्योहार था.
नजर किसकी लग गयी
क्यों अशांति हो गयी
दोष किसका क्या बताएं
मन में ‘भ्रान्ति’ हो गयी
होती रहती है कभी भी…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on July 22, 2015 at 9:00pm — 13 Comments
दो सरल रेखाएं
जब एक बिंदु पर आकर मिलती हैं
एक ऋजु कोण का निर्माण करती हैं
ऋजु कोण से अधिक कोण
क्रमश:
घटती दूरी
और
फिर न्यून कोण
न्यूनतम करती हुई
दोनों रेखाएं एक दूसरे से मिल जाती है
तब उनके बीच बनता है- शून्य कोण
समय की चोट खाकर
दोनों रेखाएं
अलग होती हुई
सामानांतर बनती है
और
अनन्त पर जाकर मिलती हैं
या फिर विपरीत दिशाओं में
और दूर
और दूर
होती…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on July 17, 2015 at 8:55pm — 8 Comments
बाबूजी जी के श्राद्ध कर्म में वे सारी वस्तुएं ब्राह्मण को दान में दी गयी जो बाबूजी को पसंद थे. शय्या-दान में भी पलंग चादर बिछावन आदि दिए गए. ऐसी मान्यता है कि स्वर्ग में बाबूजी इन वस्तुओं का उपभोग करेंगे. लोगों ने महेश की प्रशंशा के पुल बांधे।
"बहुत लायक बेटा है महेश. अपने पिता की सारी अधूरी इच्छाएं पूरी कर दी."
"पर दादाजी को इन सभी चीजों से जीते जी क्यों तरसाया गया?"- महेश का बेटा पप्पू बोल उठा.
.
(मौलिक व अप्रकाशित )
Added by JAWAHAR LAL SINGH on July 5, 2015 at 8:30pm — 22 Comments
बुढ़िया दादी बिस्तर पर पड़ी-पड़ी अपनी अंतिम साँसें गिन रही है. डॉ. साहब आते हैं, देखते हैं दवा देते हैं, कभी कोई इंजेक्शन भी चढ़ा देते हैं. डॉक्टर से धीरे धीरे बुदबुदाती है. – “बेटा, बंटी से कहो न, जल्द से जल्द ‘परपोते’ का मुंह दिखा दे तो चैन से मर सकूंगी. मेरी सांस परपोते की चाह में अंटकी है."
बच्चे की जल्दी नहीं, (विचार वाला) बंटी अपनी कामकाजी पत्नी की तरफ देख मुस्कुरा पड़ा. …
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on July 2, 2015 at 8:48pm — 5 Comments
कोकिला क्यों मुझे जगाती है,
तोड़ कर ख्वाब क्यों रुलाती है.
नींद भर के मैं कभी न सोया था,
बेवजह तान क्यों सुनाती है.
चैन की भी नींद भली होती है
मधुर सुर में गीत गुनगुनाती है
बेबस जहाँ में सारे बन्दे हैं
फिर भी तू बाज नहीं आती है
(मौलिक व अप्रकाशित)
- जवाहर लाल सिंह
गजल लिखने की एक और कोशिश, कृपया कमी बताएं
Added by JAWAHAR LAL SINGH on April 22, 2015 at 12:00pm — 12 Comments
खुशी जो हमने बांटी गम कम तो हुआ
हुए बीमार भार तन का कम तो हुआ
माँगी जो हमने कीमत मिली हमें दुआ
उनके बजट का भार कुछ कम तो हुआ
मरहूम हो गए दुःख सहे नही गए
उनके सितम का भार कुछ कम तो हुआ
माना कि मेरे मौला है नाराज इस वकत
फक्र जिनपे था भरोसा कम तो हुआ
मालूम था उन्हें हमसे हैं वो मगर
उनकी नजर में एक ‘मत’ कम तो हुआ
अन्नदाता बार बार कहते है जनाब
भूमि का भागीदार एक कम तो हुआ
(मौलिक व अप्रकाशित)
मैंने गजल…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on April 15, 2015 at 8:00pm — 15 Comments
कोकिला मुझको जगाती, उठ जा अब तू देर न कर
देर पहले हो चुकी है, अब तो उठ अबेर न कर
उठ के देखो अरुण आभा, तरु शिखर को चूमती है
कूजते खगवृन्द सारे, कह रहे अब देर न कर
उठ के देखो सारे जग में, घोर संकट की घड़ी है
राह कोई भी निकालो, सोच में तू देर न कर
देख कृषकों की फसल को, घोर बृष्टि धो रही है,
अन्नदाता मर रहे हैं, लो बचा तू देर न कर
ईमानदारी साथ मिहनत, फल नहीं मिलता है देखो,
लूटकर धन घर जो लावे, उनके…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2015 at 3:00pm — 2 Comments
गजल लिखने का प्रयास मात्र है, कृपया सुधारात्मक टिप्पणी से अनुग्रहीत करें
अंदर अंदर रोता हूँ मैं, ऊपर से मुस्काता हूँ,
दर्द में भीगे स्वर हैं मेरे, गीत खुशी के गाता हूँ.
आश लगाये बैठा हूँ मैं, अच्छे दिन अब आएंगे,
करता हूँ मैं सर्विस फिर भी, सर्विस टैक्स चुकाता हूँ.
राम रहीम अल्ला के बन्दे, फर्क नहीं मुझको दिखता,
सबके अंदर एक रूह, फिर किसका खून बहाता हूँ.
रस्ते सबके अलग अलग है, मंजिल लेकिन एक वही,
सेवा करके दीन दुखी का, राह…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2015 at 9:30am — 20 Comments
ग्रीष्म में तपता हिमाचल, घोर बृष्टि हो रही
अमृत सा जल बन हलाहल, नष्ट सृष्टि हो रही
काट जंगल घर बनाते, खंडित होता अचल प्रदेश
रे नराधम, बदल डाले, स्वयम ही भू परिवेश
धर बापू का रूप न जाने, किसने लूटा संचित देश
मर्यादा के राम बता दो, धारे हो क्या वेश
मोड़ी धारा नदियों की तो, आयी नदियाँ शहरों में
बहते घर साजो-सामान, हम रात गुजारें पहरों में.
आतुर थे सारे किसान,काटें फसलें तैयार हुई
वर्षा जल ने सपने धोये, फसलें सब बेकार हुई
लुट गए सारे ही…
Added by JAWAHAR LAL SINGH on April 1, 2015 at 11:30am — 19 Comments
सचमुच,कुछ बदला है क्या?
हाँ ...
बदली हैं सरकारें, लेकर लुभावने वादे,
खाऊँगा न खाने दूंगा,
साफ़ करूंगा, साफ़ रखूंगा,
मेक इन इण्डिया
मेड इन इण्डिया
‘सायनिंग इण्डिया’ का नया…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on January 15, 2015 at 10:39am — 17 Comments
ग्रीष्म में भी लू गरीबो को ही लगती है
ठंढ में भी उन्ही की आत्मा सिहरती है.
रिक्त उदर जीर्ण वस्त्र छत्र आसमान है
हाथ उनके लगे बिना देश में न शान है
काया कृश सजल नयन दघ्ध ह्रदय करती है
ठंढ में भी उन्ही की आत्मा सिहरती है.…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on December 29, 2014 at 1:00pm — 14 Comments
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