For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- बूँद भी नहीं मिलती...... (मिथिलेश वामनकर)

212---1222---212---1222

 

धूप भी नहीं मिलती छाँव भी नहीं मिलती

ताकतों के साए में ज़िन्दगी नहीं मिलती

 

ज़िन्दगी मुकम्मल हो ये कभी नहीं मुमकिन 

गर मिले समंदर तो तिश्नगी नहीं मिलती

 

आसमां सियासत से रूबरू हुआ जबसे

चाँद भी नहीं मिलता चांदनी नहीं मिलती

 

जाम के हवाले से दो जहां उठा लाया

मैकशी के आलम में बूँद भी नहीं मिलती

 

मत करो कदमबोसी दूरियां जरूरी है

ज्यूं तले  चरागों के रौशनी नहीं मिलती

 

बात में सचाई हो, रूह में खुदाई हो

आदमी नहीं जिसमें कुछ कमी नहीं मिलती

 

धुंध ये अजीयत की, खा गई नसीबों को

हाथ की लकीरें भी साफ़ सी नहीं मिलती

 

हसरतों के साये में बेकफन मरासिम है

आँख का मरा पानी अब नमी नहीं मिलती

 

------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-----------------------------------------------------

Views: 993

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 24, 2015 at 8:21pm

आदरणीया राजेश दीदी आपके मार्गदर्शन के अनुसार संशोधन करता हूँ. हार्दिक आभार. आपने सही कहा -.ओबिओ  जिंदाबाद... सही राह दिखाने वाले जिंदाबाद...... आपकी टीप से ग़दर फिल्म का सन्नी देवल का डॉयलाग याद आ गया उसी तर्ज़ पर ओ बी ओ जिंदाबाद था, जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगा. जय हो. सादर नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 24, 2015 at 8:17pm

आदरणीय मोहन सेठी जी सराहना हेतु हार्दिक आभार 

Comment by umesh katara on March 24, 2015 at 7:37pm

आदरणीय मिथिलेश जी शानदार गजल हुयी है बधाई 
वाह क्या उम्दा 

जाम के हवाले से दो जहां उठा लाया

मैकशी के आलम में बूँद भी नहीं मिलती

 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 24, 2015 at 4:55pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..एक से बढ़कर एक उम्दा शेर ..बार बार पढने को प्रेरित करती ग़ज़ल इस कामयाब ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 24, 2015 at 8:18am

बात में हो सच्चाई ,रूह में खुदाई हो ...या बात में सदाक़त हो रूह में खुदाई हो ---ये दो आप्शन हैं देख लीजिये 

आ० समर जी ने सही मार्ग दर्शन किया है ,इतनी शनदार ग़ज़ल ...कोई भी कसर क्यूँ छोडी जाए ....ओबिओ  जिंदाबाद... सही राह दिखाने वाले जिंदाबाद.,सही परामर्श का   सम्मान करने वाले जिंदाबाद. सही कहा न मिथिलेश भैया .अब चलती हूँ  देल्ही के लिए निकल रही हूँ | 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 24, 2015 at 8:03am

वाह मिथिलेश वामनकर जी बहुत सुंदर शेर कहे हैं ...बधाई ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 24, 2015 at 12:57am

आदरणीय समर कबीर जी, आपकी दाद पाकर झूम गया हूँ, अभिभूत हूँ. जब आप जैसे उस्ताद शायर दाद देते है तो दिल को तसल्ली भी मिलती है और सुकून भी. आपसे सदैव सकारात्मक प्रतिक्रिया और अमूल्य मार्गदर्शन मिलता है. आपने जो मिसरा सुझाया है वह बेहतरीन है. बह्र की रवानी के मोह में त्रुटी कर रहा था. आपने मिसरे को सुधारकर मेरा और रचना का मान बढ़ा दिया. हार्दिक आभारी हूँ. आपसे और आपके कलामों से हमेशा कुछ नया सीखने ही मिलता है. इस स्नेह, सराहना और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार. आपके मार्गदर्शन अनुसार मिसरे में सुधार करता हूँ. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 24, 2015 at 12:50am

आदरणीय कृष्ण मिश्रा भाई जी आपको ग़ज़ल पसंद आई, शेर किसी लायक लगा जानकार आश्वस्त हुआ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 24, 2015 at 12:49am

आदरणीया राजेश दीदी, ग़ज़ल पर आपकी मुक्तकंठ प्रशंसा पाकर अभिभूत हूँ. नए अभ्यासियों के लिए आपका स्नेह और मार्गदर्शन एक संजीवनी की तरह होता है. आप स्वयं उम्दा और बेहतरीन गज़लें कहती है, आपसे दाद पाकर रचनाकर्म को बहुत बल मिला है और उत्साह से भर गया हूँ. प्रयास करूँगा कि अपनी कलम से सदैव ऐसा कह जाऊं कि आपका स्नेह और आशीर्वाद बना रहे. आपके स्नेह के सदा आभारी ही होता हूँ. नमन 

Comment by Samar kabeer on March 23, 2015 at 11:18pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई है,इसमें शक नहीं कि आप अच्छा नहीं बहुत ही अच्छा लिखते हैं,ग़ज़ल का एक एक शैर दाद के क़ाबिल है,मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं,इस मिसरे की तरफ़ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा :-

"बात में सचाई हो, रूह में खुदाई हो"

सही शब्द है "सच्चाई",यह मिसरा अगर इस तरह लिखें:-

"बात में हो सच्चाई,रूह में ख़ुदाई हो"

तो शैर का हुस्न दौबाला हो जाएगा,कृपया अन्यथा लें,ग़ज़ल पर एक बार और मुबारक बाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service