2122 1212 22
ज़िन्दगी दी ख़ुदा ने प्यारी है
चाहतें पर बहुत उधारी है
इस तरफ़ हम खड़े उधर अरमाँ
बेबसी बस लगी हमारी है
ख़्वाब तो रोज़ ही बुनें, लेकिन
हर हक़ीकत लिये कटारी है
ख़र्च का क़द बढ़ा है रोज़ मगर
रिज़्क की शक़्ल माहवारी है
रिश्ते बदशक़्ल हो गये अपने
पेट की आग सब से भारी है
फुनगियों में लटक रहे अरमाँ
कोई सीढ़ी नहीं , न आरी है
तिश्नगी अश्क़ भी पिये कैसे
आँसुओं की नदी भी खारी है
ऐ ख़ुदा ! सिर्फ ग़म की कूँची से
मेरी तस्वीर क्यूँ उतारी है
कोई मर जाये, गर कभी जी ले
ज़िन्दगी मैनें जो गुज़ारी है
ज़िन्दगी फिर भी जी रही है तू
बस यही बात तेरी प्यारी है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश जी , आपको गज़ल पसंद आयी तो गज़ल कहना सार्थक हुआ । हौसला अफज़ाई के लिये आपका शुक्रिया ॥
ख़्वाब तो रोज़ ही बुनें, लेकिन
हर हक़ीकत लिये कटारी है
ख़र्च का क़द बढ़ा है रोज़ मगर
रिज़्क की शक़्ल माहवारी है
रिश्ते बदशक़्ल हो गये अपने
पेट की आग सब से भारी है
वाह बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयां ......................
आदरणीय विजय भाई , आपकी सराहना ने ग़ज़ल कहना सार्थ्क कर दिया , सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥
आदरणीया निधि जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।
आदरणीय कृष्णा भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
रिश्ते बदशक़्ल हो गये अपने
पेट की आग सब से भारी है---उम्दा शेर
ऐ ख़ुदा ! सिर्फ ग़म की कूँची से
मेरी तस्वीर क्यूँ उतारी है---दिल छू गया शेर
ज़िन्दगी फिर भी जी रही है तू
बस यही बात तेरी प्यारी है ---वाह्ह्ह
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० गिरिराज जी ,दिली बधाइयां
ख़्वाब तो रोज़ ही बुनें, लेकिन
हर हक़ीकत लिये कटारी है - व्व्वाह्ह्ह्ह क्या कहने
रिश्ते बदशक़्ल हो गये अपने
पेट की आग सब से भारी है - एकदम सार्थक एवं सच
बहुत बढियां ग़ज़ल हुई
ऐ ख़ुदा ! सिर्फ ग़म की कूँची से
मेरी तस्वीर क्यूँ उतारी है वाह! यह शेर तो लाजवाब बन पढ़ा है!
कोई मर जाये, गर कभी जी ले
ज़िन्दगी मैनें जो गुज़ारी है क्या बात है! क्या बात है!
ख़र्च का क़द बढ़ा है रोज़ मगर
रिज़्क की शक़्ल माहवारी है
रिश्ते बदशक़्ल हो गये अपने
पेट की आग सब से भारी है वाह वाह! इन उम्दा दो शेरों पर अलग से दाद!
सुंदर गजल पर ढेरों बधाईयां आदरणीय गिरिराज सर जी!
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