For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

' एक सवाल पूछूँगा ज़रूर ' -- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

ऐ ज़िन्दगी !

सांसे चल रहीं है मेरी , इसलिये

मरा हुआ तो नहीं कह सकता खुद को

जी ही रहा होऊँगा ज़रूर, किसी तरह , ये मैं जानता हूँ

पर एक सवाल पूछूँगा ज़रूर

 

क्या सच में तू मेरे अंदर कहीं जी रही है ?

जैसे ज़िन्दगी जिया करती है

इस तरह कि  , मै भी कह सकूँ जीना जिसे

उत्साहों से भरी

उत्सवों से भरी

उमंगों से सराबोर सोच के साथ , निर्बन्ध  

चमक दार आईने की तरह साफ मन

प्रतिबिम्बित हो सके  जिसमें शक्ल आपकी , खुद की भी , इसकी या उसकी, सभी की

जैसे कि दिखा देता है , एक निर्दोष, बेग़रज़ आईना हर किसी को

कहकहे लगा सकूँ, हर इक खुशी में ,

नाच उठे मेरा मन

चाहे वो खुशी किसी के हिस्से में आयी हो , मेरी या औरों की

 

भीग जायें मेरी आस्तीने आँसुओं से

आसपास की परिस्थितियों से स्वतः साझा हुये दुखों के निमित्त

संवेदनायें बहतीं रहें निर्बाध

करुना के काले बादल सदा बरस जाने को तैयार

 

उठ जायें स्वतः दुआओं के लिये मेरे दोनों हाथ

सबके लिये निकले दुआयें दिल की गराइयों से  

कि ,

हे प्रभू सबको सुख , शांति दे , आनन्द दे

और दे प्रेम

सब के हृदय में सबके लिये

बस एक सवाल है ,

ऐ ज़िन्दगी ! कभी जी पायी है क्या तू ऐसी मुझमें ?

*********************************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 16, 2015 at 11:01am

आदरणीय खुर्शीद भाई रचना के भावों के अनुमोदन के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 16, 2015 at 11:00am

आदरणीय सोमेश भाई , आपका बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 16, 2015 at 11:00am

आदरनीया राजेश जी , रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by khursheed khairadi on March 14, 2015 at 9:20am

हे प्रभू सबको सुख , शांति दे , आनन्द दे

और दे प्रेम

सब के हृदय में सबके लिये

बस एक सवाल है ,

ऐ ज़िन्दगी ! कभी जी पायी है क्या तू ऐसी मुझमें ?

सर्व मंगल की कामना के साथ जीवन के उद्देश्य को तलाशती सुन्दर रचना है |सादर अभिनन्दन |

Comment by somesh kumar on March 14, 2015 at 8:53am

सुंदर भाव आदरणीय |बधाई इस दार्शनिक चिंतन पर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 13, 2015 at 6:15pm

अंतर्मन में उपजे प्रश्नों के हल ढूंढती प्रस्तुति अपने अन्दर झाँकने का प्रयास ...वाह बहुत अच्छी रचना ,हार्दिक बधाई आपको आ० गिरिराज जी. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2015 at 10:49am

आदरणीय शिज्जु भाई , रचना और उसकी सहजता को स्वीकार करने केलिये आपका सिली शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2015 at 10:47am

आदरणीय महर्षि भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2015 at 10:47am

आदरणीय विजय भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2015 at 10:46am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
19 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
20 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
21 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
22 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service