For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गावं के घर का एक छोटा द्वार

गावं के घर का एक छोटा द्वार

मेरे गावं के घर में एक छोटा द्वार था
जिससे आ जाया करते थे पाहुने
नाते के रिश्ते के जाने अनजान
घर के गावं के और मेहमान

उसी दरवाज़े से आते थे गावं के बच्चे
लस्सी लेने
खबरें देने
कि किसकी गाय ने
भूरा या कि काला जाया है
और कि रतिया की ससुराल से कौन आया है
खबर ये भी कि रतिया की रसोई में धुंआ है
पकवानों की बारी है
रतिया के ससुराल जाने की तयारी है

इसी द्वार से आई थी माँ
नई नवेली दुल्हन बन कर
सज धज कर सपने चुन कर
हल्दी लगी हथेली दीवार भर छापी थी
गज भर भर आँचल से देहरी नापी थी
इसी द्वार पर माँ ने मेंहदी रचे पावों
अनाज भरा कलसा पलटाया था
गावं घर की सुहागिनों ने
सुख सौभाग्य का गीत गाया था
अन्नपूर्णा सी माँ घर की बहू हो गयी थी
दुनिया बसाने में सम्पूर्ण हो खो गयी थी.......

सूरज जागने से पहले किरण हो जाती माँ
सूरज के सोते ही जुगनू हो जाती थी
उसके बाद घर अपना हो जाता था
माँ जगती थी घर सो जाता था

समय चलता रहा रूप बदलता रहा
पर माँ माँ रही नहीं बदली
द्वार भी वैसा रहा नहीं बदला

एक बार फिर द्वार ने दिन दोहराया
माँ ने फिर वैसा ही तोरण सजाया
इसी द्वार से किया बहू का गृह-प्रवेश
निज का और द्वार का हासिल निवेश

हर दिन होती रही दहलीज रोली
हर दिन सजती रही छोटी रंगोली
दहलीज पर कोई खड़ा न होता
बाहर होता या भीतर होता
द्वार गर्वित रहा द्वार चर्चित रहा.......

फिर एक दिन सब कुछ रहा
पर माँ नहीं रही
द्वार ने देखा था माँ को डोली में आते
द्वार ने देखा माँ को काँधे पे लिए जाते
नहीं देखा तो माँ ने द्वार को अश्रू बहाते

अब द्वार नही रहा वो द्वार
हो गया है लोहे का बड़ा गेट
जिसके साथ एक चौकस कुत्ता ऊंघता रहता है
खाली सडक को सूंघता रहता है .
........................................................अमिता तिवारी

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 12, 2015 at 12:10pm

आदरणीया अमिता  जी , सुन्दर भावपूर्ण रचना ,हार्दिक बधाई l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 12, 2015 at 8:08am

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण रचना हुई है , आदरणीया बधाइयाँ ।

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 12, 2015 at 6:14am

बधाई स्वीकार करें ऐसी भावपूर्ण रचना के लिये ...दिल तक पहुँच गई ...सादर 

Comment by maharshi tripathi on March 11, 2015 at 5:52pm

बहुत सुन्दर ,,आरंभ से अंत तक बस मुग्ध ,,,क्या खूब चित्रण है ,,बहुत बहुत बधाई आ.अमिता जी |

Comment by विनय कुमार on March 11, 2015 at 1:40pm

वाह वाह , बहुत सुन्दर | सजीव चित्रण किया है आपने , बहुत बहुत बधाई..

Comment by Shyam Mathpal on March 11, 2015 at 1:34pm

Aadarniya Amita Ji,

Aapne aarambh ki doli se lekar anta ki doli ka bada marmik a bhapurn chitran kiya hai. Bahut badhai.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 11, 2015 at 12:26pm

आ 0 अमिता जी

आपकी कविता किसी जीवंत घटना की भाँति  दिल में उतरती गयी i उतरती ही नहीं असर करती गयी  i क्या सुन्दर चित्र खींचा है आपने i अति सुन्दर i भावपूर्ण  i आपके बधाई  i

Comment by Hari Prakash Dubey on March 11, 2015 at 10:06am

आदरणीया अमिता तिवारी जी , सुन्दर भावपूर्ण रचना ,हार्दिक बधाई आपको सादर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
3 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
3 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
7 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service