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चिलमन को ज़रा ऊपर , नज़रों से उठा दूँ तो
पर्दों की हक़ीक़त क्या , दुनिया को बता दूँ तो
ख़्वाबों में ख़यालों में , जीने का मज़ा क्या है
कुछ रंग हक़ीकत के , आज उसपे चढ़ा दूँ तो
ये उखड़ी हुई सांसे , लगतीं हैं बुलातीं सी
उन सांसों में मै अपनीं , सांसें भी मिला दूँ तो
नज़रों ने कही थी जो , नज़रों से कभी मेरी
वो बात सरे महफिल , मैं आज बता दूँ तो
राहे वफा में फैले , गर ख़ार डराते हैं
वो ख़ार हटा कर मैं , फूलों से सजा दूँ तो
सौ रंग लगाया है , होली में जहाँ तू ने
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , उत्साहवर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय महर्षि भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आ[पका हार्दिक आभार ॥
सौ रंग लगाया है , होली में जहाँ तू ने
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.-------------vaah vaah anuj . You are genious .
सौ रंग लगाया है , होली में जहाँ तू ने
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.
आदरणीय बहुत खुबसुरत ख्याल है इस गज़ल में |हार्दिक बधाई आपको |
आदरणीय गिरिराज सर बहुत सुन्दर रचना.हार्दिक बधाई आपको ! सादर
ये उखड़ी हुई सांसे , लगतीं हैं बुलातीं सी
उन सांसों में मै अपनीं , सांसें भी मिला दूँ तो………….vaah
इस मनोहारी गजल के तर्ज पर आपको होली की बहुत बहुत बधाई आ. गिरिराज सर |
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