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मदिरा सवैय्या (7 भगण +गुरु )  कुल वर्ण 22

 

चेतन-जंगम के उर में  अविराम  सुधा सरसावत है

रंग भरे प्रति जीवन में हिय आकुल  पीर बढ़ावत है

बालक वृद्ध युवा सबके  यह अंतस हूक जगावत है

पावन है मन-भावन है रुत फागुन की मधु आवत है

 

सुमुखी सवैय्या (7 जगण +लघु+गुरु )   कुल वर्ण 23

 

मरोर उठी  वपु में  जब से यह लक्षण  भेद बताय गयी

सयान सबै  सनकारि उठे तब भावज भी  समुझाय गयी

हुयी अब  बावरि  वात अनंग अनीक अली नियराय गयी

मथै मन मन्मथ वेगि सखी सु सुहावनि सी रुत आय गयी

 

दुर्मिल सवैय्या ( 8 सगण )       कुल वर्ण 24

 

हुरियार चले सब चंग बजावत नाचत–गावत भंग पिये

मदमस्त सबै लहराय रहे कछु धावत है मिरदंग लिये

कछु पंकज-लोलुप घूम रहे निज लोचन आतुर भृंग किये

अब खेल हमें लगता सब है वह जो हमने बहुरंग जिये

 

किरीट सवैय्या (8 भगण )            कुल वर्ण 24

 

देवर खेलन होरि चले कर रंग लिये घट में मन भावन

भावज का पट लाल करूं मन में यह भाव लिये अति पावन

बादल दूं बरसा अपने घर रंग महा रस  का मधु सावन

भावज ने पकडे  तब कान लगी घर आँगन नाच नचावन

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 12:59pm

आ० वामनकर जी

आपके स्नेह से अभिभूत हूँ i  सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 12:58pm

प्रिय सोमेश

आपका बहुत बहुत आभार i पर प्रिय मैंने कोई आडिओ या वीडिओ पोस्ट नहीं किया हैं  i सप्रेम i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 12:55pm

आ 0 हरि प्रकाश जी

आपके स्नेह का आभार i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 12:55pm

आ० गुमनाम पिथौरागढ़ी जी

आपका सप्रेम आभार i  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2015 at 12:53pm

प्रिय निर्मल नदीम जी

आज के दौर में भी मै छान्दसिक रचनाये करता हूँ i सस्नेह i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 1, 2015 at 11:48pm

आदरणीय गोपाल नारायनजी आपने तो सवैयों की बाढ़ ला दी है !!
सवैये भी क्या मन एक्दम से फागुन-फागुन हो गया है. चार तरह के सवैया-छन्दों से फागुन को समेटने का प्रयास मन प्रसन्न कर रहा है. सुमुखी सवैया की कहन तो बार-बार पढ़ने को उकसा रही है ! दृश्य पर क्या ही महीन भाव अठखेलियाँ कर रहे हैं !
आदरणीय, सवैयों पर प्रयास करने वाले कम ही रचनाकार हैं, अतः इस प्रस्तुति को हृदय से सम्मान दे रहा हूँ.
इस छान्दसिक प्रयास के लिए आपको बार-बार बधाइयाँ.

रंग भरे प्रति जीवन में हिय आकुल  पीर बढ़ावत है............ रंग भरे हर जीवन के हिय आकुल पीर बढ़ावत है
पावन है मन-भावन है रुत फागुन की मधु आवत है.............. पावन है मन-भावन है जग, फागुन की ऋतु आवत है

भावज का पट लाल करूं मन में यह भाव लिये अति पावन....... यह भाव पावन ? .. ;-))

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2015 at 10:50pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर सशक्त रचनायें हैं अलग अलग सवैये के रूप में आपने होली के विविध रूपों को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया है बहुत बहुत बधाई आपको।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2015 at 8:29pm

आदरणीय बड़े भाई , मै क्या तारीफ करूँ , बस पढ के मगन , मुग्ध हूँ । आदरणीय सोमेश भाई जी के कहे का मै  भी अनुमोदन कर रहा हूँ , छंद पाठ का आडियो संभव हो तो पोस्ट अवश्य करें , सुन के और आनन्द आयेगा ॥ आपको इन छ्न्दों के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 8:28pm

मरोर उठी  वपु में  जब से यह लक्षण  भेद बताय गयी

सयान सबै  सनकारि उठे तब भावज भी  समुझाय गयी

हुयी अब  बावरि  वात अनंग अनीक अली नियराय गयी

मथै मन मन्मथ वेगि सखी सु सुहावनि सी रुत आय गयी

 आदरणीय गोपालनारायण सर ,सवैयों से परिचय और वो भी आपके सरस छंदों के माध्यम से ,save करके अपने संग्रह में लेने का मोह नहीं छोड़ पा रहा हूं (नेट की उत्कृष्ट रचनाओं की अपनी फाइल )|इतने सरस भावपूर्ण और श्लील और रंगीले सवैयों के लिए आपको बहुत बहुत बधाई |सादर अभिनन्दन |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 1, 2015 at 7:17pm

फाल्गुन के सुंदर और मन भावन सवैयें पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया और होली की रंगत का अहसास होने लगा | बहुत बहुत बधाई डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

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