नारी बरसों से देवी तुल्य कहलाती है
मगर यह बात मुझे अचंभित कर जाती है
केवल कागजों में छपी हैं यह कागज़ी बातें
सच्चाई मगर.. कुछ और बयां कर जाती है
चीखें दबी -दबी सी ,साँसे घुटी. घुटी सी
पथराई आँखें बदहवास सी नज़र आती है
रुदन को गुप्त रख स्मित बरसाती है
निशब्द सी धडकनें डरकर रह जाती है
जज्बात उसके सदा सहमें से लगते हैं
घरोंदे में छुपकर वह जीवन बिताती है
सिंदूर में रंग कर रक्तिमा कहलाए जब
लाल सूरज सी बिंदिया बेहद जलाती है
नारी बरसों से देवी तुल्य कहलाती है
मगर यह बात मुझे अचंभित कर जाती है
( मौलिक और अप्रकाशित )
डिम्पल गौड़ ' अनन्या '
Comment
आदरणीया डॉ प्राची जी , समाज में नारी की स्थिति देख कर दुःख होता है...उसी व्यथा को अपनी रचना के माध्यम से व्यक्त करने का छोटा सा प्रयास किया है...आपको रचना पसंद आयी इसके लिए बेहद शुक्रिया आपका |
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, रचना पसंदगी के लिए बहुत बहुत आभार आपका |
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ..|
नारी को देवी-तुल्य मान उससे हर कदम पर बलिदान की अपेक्षा करना.. यकीनन कोइ साजिश सी ही लगती है जब यथार्थ के धरातल पर नारी को प्रताड़ित किये जाने की हर सीमा समाज भिन्न भिन्न स्वरूपों में पार करता सा दीखे..और नारी बेबस लाचार सहमी सिसकती रह जाए.
नारी जीवन की वेदना को स्वर देती इस अभिव्यक्ति पर हृदय तल से बधाई आदरणीया डिम्पल गौर जी
आदरनीया अनन्या जी , नारी के विषय में बहुत अच्छी बातों को शब्द दिया है आपने । रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना. बधाई आदरणीया डिम्पल जी.
सत्य को सत्य कहने के लिए बधाई आदरणीया |
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी...रचना पर आपकी प्रतिक्रिया जान कर बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है ...सादर धन्यवाद आपका |
रचना की सराहना करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका ...आदरणीय कृष्णा मिश्रा जी |
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