ख्वाहिशों के सूरज का उगना हर सुबह
मन की खिड़की से झांकना हर सुबह
परदे मन पर लगाना चाहती है
ओट में हसरतों को दबाना चाहती है
क्योंकि वह एक लड़की है
समाज की नज़रों में लड़की बोझ होती है
उसे उम्मीदों के आँगन में
आशाओं के फूल खिलाने का
कोई हक नहीं होता
उसे हक है बस इतना कि
पराया धन कहलाए
किसी और के मधुबन को
चमन वो बनाए
लगा कर माथे रक्तिम गोल चिन्ह
किसी की पत्नी तो
किसी की बहू वह कहलाए
पैरों में बाँध कर बन्धनों की पायल
अपनी ही आवाज़ को
घुंघुरू के शोर में दबाए
मौनमूक रह अपने कर्तव्यों को निभाए
ड्योढ़ी पर आते आते कदम उसके थम से जाते हैं
क्योंकि वह एक लड़की है !!
(मौलिक और अप्रकाशित )
डिम्पल गौड़ " अनन्या "
Comment
Samar kabeer जी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका अनंत आभार |
Dr. Vijai Shanker जी अभी तो बहुत कुछ सीखना है | जो भी लिखा आपको पसंद आया इसके लिए आपका तह दिल से आभार |
Kewal Prasad जी आपकी सटीक सराहना हेतु हार्दिक आभार |
shree suneel जी सादर आभार आपका |
Mohan Sethi जी रचना की सराहना करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी बेहद शुक्रिया आपका |
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी आपकी उत्तम प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद |
आदरनीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपकी सटीक प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार | आपने जो भी खामियां चित्रित की हैं उन्हें भविष्य में सुधारने का पूरा पूरा प्रयत्न करुँगी | एक बात कहना चाहती हूँ कि आज भी कितनी ही जगह नारी अपने स्वाभिमान का गला घोंटने को मजबूर है | आधुनिक नारी तो जागरूक हो चुकी है मगर पिछड़े इलाकों में आज भी वही पुरानी स्थिति है | इस कविता के माध्यम से मैंने उन्हीं लड़कियों की दशा का वर्णन करने का एक छोटा सा प्रयास किया है | सादर |
आ० अनन्या जी
पहले तो खावाहिशों को ख्वाहिशों कर लें i दूसरी बात परंपरागत सोच से बाहर आइये .लड़की होने पर फक्र कीजिये , अपना स्वाभिमान ऊँचा कीजिये . माँ , बहन. बेटी. पत्नी और बहू नारी के किस रूप में गरिमा नहीं है . फिर आज की नारी , वह तो बहुत ही जागरूक है . विचारों में सकारात्मकता लाईये , सादर .
सदा से आ रही एक मूक वेदना को बहुत उम्दा भाव मिले, बधाई आदरणीया डिम्पल जी
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