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“ हे. भगवान..बस! एक पोते की कामना थी,  वो भी पूरी नहीं हो पाई इस बार. तीन-तीन पोतियों की लाइन लग गई ” अपनी बहु के कमरे से बाहर, खले की ओर जाते हुए मन में बडबडा ही रही थी, कि

“ माँ!! मैं बाजार जा रहा हूँ, कुछ लाना हो बता दो ” बेटे ने पूछा

“ हाँ! बेटा.. गुड़ ले आना, वो बूढी गाय न जाने कब जन जाए, अब की बार बछिया ले आये तो आगे भी घर का दूध मिल जाया करेगा “

      जितेन्द्र पस्टारिया

   (मौलिक व् अप्रकाशित)    

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2015 at 8:15pm

आपकी उत्साहवर्धक सराहना हेतु ह्रदय से आभारी हूँ, आदरणीय गिरिराज जी. स्नेह बनाए रखियेगा

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2015 at 6:54pm

लाजवाब , दोहरी मानसिकता को खूब बयान किया है ! दिली बधाइयाँ ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2015 at 11:59am

आदरणीय सोमेश भाई जी, आपका ह्रदय से आभार. स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2015 at 11:57am

आदरणीय मिथिलेश जी. आपकी विस्तृत उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से लेखनी को मनोबल, लघुकथा को सार्थकता का प्रमाण मिला. आपका ह्रदय से आभारी हूँ, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2015 at 11:54am

आपका बहुत-बहुत आभार, आदरणीय विनय जी.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2015 at 11:53am

आदरणीय शरदिंदु जी. आपकी सराहना व् शुभकामनायें सहर्ष स्वीकार हैं, स्नेह बनाये रखियेगा

 सादर!

Comment by somesh kumar on February 6, 2015 at 9:50am

सुंदर लक्ष्यभेदी लघुकथा ,हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2015 at 3:10am

आदरणीय  जितेन्द्र पस्टारिया जी उत्कृष्ट और सफल लघुकथा. मंच पर प्रस्तुत श्रेष्ट लघुकथाओं में से एक. पंच लाइन अपना कमाल पूरे प्रभाव से दिखाती है. इतने कम शब्दों में मूल भाव का तड़ाक से उभर आना ही इस लघुकथा को सफल बनाता है. इस लघुकथा के लिए हृदय से बधाई स्वीकारें. एक एक शब्द जड़ा हुआ और हर वाक्य गठा हुआ. 

Comment by विनय कुमार on February 6, 2015 at 2:26am

सुन्दर लघुकथा आदरणीय जीतेन्द्र पस्तारिआ जी , बधाई..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 6, 2015 at 1:52am
आदरणीय जितेंद्र जी, बहुत अच्छी लगी गुरु भावों से संपृक्त आपकी यह लघुकथा. शुभकामनाएँ.

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