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"अरे!!  तुम्हारे जैसे गरीब अनाथ के झोपड़े में महात्मा गाँधी की तस्वीर...”

 

“हाँ! साहब,  अभी कुछ दिन पहले ही लोगों ने चौराहे पर इस तस्वीर को लगाकर.. मालायें पहनाई, खूब  जोर-शोर से भाषण-बाजी की. फिर इसे सब,  वहीं छोड़कर चले गये.. ये वहां बे-सहारा थे,  तो इन्हें अपने घर ले आया...”

 

 

     जितेन्द्र पस्टारिया

 

 (मौलिक व् अप्रकाशित)   

 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 27, 2015 at 8:36pm

उत्साहवर्धन हेतु आपका आभारी हूँ, आदरणीय विनय जी

सादर!

Comment by विनय कुमार on January 26, 2015 at 8:01pm

अच्छा कटाक्ष करती लघुकथा है , बधाई आपको..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 7:56pm

आदरणीय गिरिराज जी, आपकी बधाई सहर्ष शिरोधार्य है. आपका ह्रदय से आभार, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 7:53pm

आदरणीय हरिप्रकाश जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ. स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 7:51pm

आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया पाकर बहुत मनोबल मिला, आदरणीया कांता जी. आपकी उपस्थिति हेतु आपका आभारी हूँ

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 7:44pm

आपकी विस्तृत व् सटीक प्रतिक्रिया लघुकथा की सार्थकता का प्रमाण दे रही है आदरणीय शिज्जू जी. स्नेह बनाए रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 7:41pm

सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार , आदरणीय वीर मेहता जी.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 7:39pm

रचना आपका आशीर्वाद पाकर, धन्य हुई आदरणीय डा.विजय जी. स्नेहिल आशीर्वाद बनाए रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 7:37pm

आदरणीया राजेश दीदी, आपकी स्नेहिल व् मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया की सदा प्रतीक्षा रहती है. स्नेह बनाए रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 26, 2015 at 7:34pm

आदरणीय विनोद जी, आपकी उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार

सादर!

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