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क्या आप सच में वैसे ही हैं ? --- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

मेरे सबसे प्रिय रचनाकार  

कभी प्रत्यक्ष मिला नहीं आपसे

सपना है मेरा ,

आपसे मिलना , बातें करना

घंटों ,

किसी झील के किनारे

सूनसान में

 

आपकी हर रचनायें

गढती जाती है

मेरे अन्दर आपको

बनती जाती है

आपकी छवि ,

कभी धुंधली , कभी चमक दार , साफ साफ

क़ैद है मेरे दिलो दिमाग़ में

आपकी रचनाओं की सारी खूबियों के साथ

आपकी एक बहुत प्यारी छवि

 

क्या आप सच में वैसे ही हैं

जैसी आपकी रचनायें बनातीं हैं आपको

मन डरता भी है

कभी कभी

सोचने लगता है  

आपकी रचनायें आपके दिल का अनुवाद है या नहीं ?

कहीं दिमागी गुणा भाग ही न हो

शब्दों से अर्थ कमाने की

एक नितांत बाहरी कोशिश मात्र

 

मन डरता है , मिलने से

ख़्वाब के टूट जाने की आशंकाओं से

क्या आप सच में वैसे ही हैं

जैसी आपकी रचनायें  ? ॥

**********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 831

Comment

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Comment by somesh kumar on January 30, 2015 at 11:32am

क्या आप सच में वैसे ही हैं

जैसी आपकी रचनायें बनातीं हैं आपको

मन डरता भी है

कभी कभी

सोचने लगता है  

आपकी रचनायें आपके दिल का अनुवाद है या नहीं ?

कहीं दिमागी गुणा भाग ही न हो

शब्दों से अर्थ कमाने की

एक नितांत बाहरी कोशिश मात्र

 एक पाठक मन के कितने बेतहरीन सवाल उठाए आपने |एक पाठक बनकर ये सवाल हर लेखक के मन भी अवश्य उठता है |ऐसा यकीन है |पर सच्च है लेखक एक शब्द-शिल्पी होता है |गुणा-भाग करके वही दिखाता है जो वो दिखाना चाहता है |बधाई इस बेहतरीन विचार-मंथन पे |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2015 at 8:02am

आदरणीय विजय भाई , रचना के अनुमोदन और सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2015 at 8:01am

आदरणीयमिथिलेश भाई , सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2015 at 8:00am

आदरणीय विरेन्दर वीर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2015 at 7:59am

आदरणीय बागी भाई जी , आपकी सराहना करती प्रतिक्रिया ने लेखन कर्म सार्थक कर दिया । आपका हृदय से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2015 at 7:57am

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , आपका  बहुत बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 30, 2015 at 7:57am

आदरनीय नादिर खान भाई , बहुत दिनों बाद आपके दर्शन हुये , बहुत अच्छा लगा । आपकी सराहना के लिये आपका अभार ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 30, 2015 at 2:00am
बड़ी स्वाभाविक ही जिज्ञासा है, बड़ी मासूम सी रचना है. बधाई , आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 30, 2015 at 12:58am

कविता सीधे दिल में उतर गई. खो गया हूँ इस रचना के सौन्दर्य में. सीधे सादे, सरल और सहज शब्दों में मार्मिक कविता. नमन गिरिराज सर. 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 29, 2015 at 10:09pm
........ कहीं दिमागी गुणा भाग ही न हो
शब्दों से अर्थ कमाने की ... ...
अति सुन्दर. ... आज के समाज में हर वस्तु के व्यवसायीकरण होने को रेखाकिंत करते ये शब्द लाजवाब है। आदरणीय गिरिराज भंडारी जी.

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