बाउजी, आखिरकार वो “रोडियो वाली फिल्म” ने झंडे गाड़ दिए ,सनसनी पैदा कर दी है, और साहब सुना है की हीरो ने और जिसने फिल्म बनाई है उसने “करोड़ों रूपये अन्दर कर लिए हैं “ !
“हाँ बात तो सही कह रहा है तू .........तूने देखी है वो फिल्म ?”
नहीं साहब पैसे नहीं जुटा पाया, मैं लोगों के जूते सिलता ,पॉलिश करते हुए यहीं लोगों से उसकी कहानी सुनता रहता हूँ !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
इस लघुकथा पर आपके समर्थन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी !.
हार्दिक आभार आदरणीया आशा पाण्डेय ओझा जी ! सादर
"लघुकथा की मुक्तकंठ से प्रशंसा हेतु हार्दिक आभार आदरणीय भाई मिथिलेश वामनकर जी।"
अच्छी लघुकथा आदरणीय
आदरणीय बहुत सुन्दर , मार्मिक लघु कथा के लिये बधाई ।
आदरणीय हरी प्रकाश जी, क्या ख़ूब ,मार्मिक , सीधे अंतर्मन पर चोट |सादर अभिनन्दन |
हार्दिक बधाई ... आ० भाई हरी प्रकाश जी l
बहुत सुंदर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई |
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