For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नाम तुम्हारे (गीत )

नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा

तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा

अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी

पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी

जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |

नाम तुम्हारे..........

गोरी कलाई में पहने थी तुम कंगन काला

बालों की लट ऐसे बिखरे जैसे हो मधुबाला

जिससे बोलोगी वो तुम पे जान लुटा ही देगा |

नाम तुम्हारे ..........

खन-खन करती बोली तुम्हारी जैसे चूड़ी बोले

शब्द तुम्हारे सुनकर पत्ते,कलियाँ.भौरे डोलें

हलचल पूरा ताल करे था जब तुमने कंकड़ फैंका|

नाम तुम्हारे..........

आँख तुम्हारीं झील समंदर याकि दुर्लभ मोती

छंटता है जिससे अँधियारा तुम हो वो ज्योति

खोया हूँ मैं तुममे जब से तुम को देखा

नाम तुम्हारे..........

चंचल हिरणी तुम थी ,भरती रही कुलांचे

मोर,चकोर,जोगी,साधू सब तेरी धुन में नाचें

हो जाएगा वो तो गद्गद् हो तुम जिसकी किस्मत-रेखा |

नाम तुम्हारे..........

मतवाली मधुशाला बोलूं या बोलूं तुम्हें ताड़ी

अच्छे-अच्छे चित कर डाले हारे सभी खिलाड़ी

तुम्हारें नशे के आगे पानी भरने लगा हर ठेका |

नाम तुम्हारे..........

C-@-सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित,अगस्त 2014 ) 

Views: 531

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by asha pandey ojha on January 15, 2015 at 12:12am

वाह बहुत ही सुंदर भावपूर्ण गीत  ,सम्मानीय  somesh kumar जी 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 14, 2015 at 8:44pm

श्रृगार रस से परिपूर्ण अच्छी रचना श्री सोमेश kumar जी .... नाम तुम्हारे 

Comment by somesh kumar on January 14, 2015 at 3:34pm

शुक्रिया ,स्नेह व् उत्साहवर्धन के लिए |

Comment by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 12:53pm

नाम तुम्हारे दीवारों पे लिख छोड़ा सन्देशा

तुम भी लिखना खत मुझको,जो इसको देखा.....सोमेश भाई सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 14, 2015 at 12:51pm

आदरणीय सोमेश भाई , गीत का बहुत उत्तम प्रयास हुआ है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

आदरणीय , गीत के लिहाज़ से गेयता मे और कलों को और मात्राओं को साधने की ज़रूरत है ।

Comment by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 12:34pm

अंजान नगर,अंजान डगर तुम बिल्कुल अन्जानी

पर अपने ठोढ़ी के तिल से जाती हो पहचानी

जब हंसती हो गालों पे खिंच जाती है रेखा |

नाम तुम्हारे..........

 आदरणीय सोमेश भाई सुन्दर अति सुन्दर ,आपने तो मुझे लड़कपन की साथी याद दिला दी , वही तिल वही रेखा ,,कहीं ये वही तो नहीं | सादर  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 14, 2015 at 11:48am

सोमेश् जी

अच्छा  प्रयास है  i

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2015 at 10:57am

लाजवाब प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई स्वीकारेँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 13, 2015 at 11:19pm
आदरणीय सोमेश भाई जी सुन्दर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service