For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भूमिका(कविता)

अश्रु-पूरित चन्दन से भी

अगर टीकूँ|

है असम्भव अब तुम्हारा

लौट आना||

मैं इस मंच पर अभी कुछ

और खेलूँगा|

तुमकों जो अभिनय जँचे

तो मुस्काना ||

था टिका सम्बन्ध जिस पर

घुना वो आलम्ब|

हो सके तो उसपे कुछ

रेह लगाना||

हो सघन  तिमिर जब कोई  

राह ना सूझे|

तुम करना मेरा पथ-प्रशस्त

टिमटिमाना |

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित)     

 

Views: 412

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 4:58pm

आदरणीय सोमेश कुमार जी  बहुत शानदार कविता है बधाई स्वीकारें

Comment by somesh kumar on January 14, 2015 at 2:46pm

शुक्रिया ,साहित्य के सभी मर्मज्ञों और अभिन्न मित्रों एवं गुरुओं जनों का ,पथ-प्रशस्त करने एवं सराहना 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 13, 2015 at 9:06pm

अच्छी रचना आदरणीय सोमेश कुमार जी  

Comment by Hari Prakash Dubey on January 12, 2015 at 5:05pm

हो सघन  तिमिर जब कोई 

राह ना सूझे|

तुम करना मेरा पथ-प्रशस्त

टिमटिमाना |......सुन्दर , सोमेश भाई हार्दिक बधाई !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 3:26pm

उत्तम प्रयास i  ना उम्मीदी भी और चाह भी i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 8:39am

आदरणीय सोमेश भाई जी सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई .... खूब अच्छा लिखा है -

अश्रु-पूरित चन्दन से भी अगर टीकूँ

है असम्भव अब तुम्हारा लौट आना............ कमाल 

मैं इस मंच पर अभी कुछ और खेलूँगा

तुमकों जो अभिनय जँचे तो मुस्काना

था टिका सम्बन्ध जिस पर घुना वो आलम्ब

हो सके तो उसपे कुछ रेह लगाना.................. वाह 

हो सघन  तिमिर जब कोई  राह ना सूझे

तुम करना मेरा पथ-प्रशस्त टिमटिमाना........... बेहतरीन 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service