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नव वर्ष कहलायेगा.............

नव वर्ष कहलायेगा.......

ऐ भानु
तुम न जाने
कितनी सदियों को
अपने साथ लिए फिरते हो
सृजन और संहार को
अपने अंतःस्थल में समेटे
खामोशी से
न जाने किस लक्ष्य की प्राप्ति में
प्रतिदिन स्वयं की आहुति देते हो
आश्चर्य है
धरा के संताप हरने को
अपने सर पर ताप लिए फिरते हो
आदिकाल से
प्रतिदिन अपनी केंचुली बदलते हो
हर आज को काल के गर्भ में सुलाते हो
फिर नए कल के लिए
नए स्वप्न लिए भोर बन के आते हो
समय का चक्र
अपनी गति से चलायमान रहता है
हंसी आती है तुम्हारे संकल्प पर
तुम्हारी इस धरा पर
खाल में ढके कंकाल से
किसी संकल्प के पूर्ण होने की अपेक्षा बेकार है
ये मानव स्वार्थी है
ये अपनी मुट्ठी में
अपना प्रकाश और अंधकार समेटे है
ब्रह्माण्ड की उत्पति काल से
तुम ३६५ दिन में एक नयी आशा के साथ
करवट लेते हो
नूतन पोशाक धारण कर
नव वर्ष के रूप में अवतरित होते हो
लेकिन ३६४ दिन ये धरा का मानव
तुम्हारी भावनाओं,उद्देश्यों के साथ
कभी उजाले में तो कभी अन्धकार में
खिलवाड़ ही करता आ रहा है
ये रिश्तों के बाँध तोड़कर
झूठ और फरेब की नक़ाब पहनकर
बालात्कार की चीखों पर नृत्य कर
हर पल सामाजिक मर्यादाओं की खिल्ली उड़ाकर
प्रभु के बनाये सृष्टि के नियमों का उपहास उड़ाकर
तुम्हें प्रतिपल ज़ख़्म देकर छलनी करता है
क्या इसी को प्रसन्नता देने के लिए तुम
नव वर्ष के रूप में करवट बदलते हो
एक भानु
तुम महान हो
तुम मानव की भलाई के लिए जलते रहे
और मानव तुम्हें छलते रहे
जिस दिन मानव मानव के लिए जियेगा
कुकर्मों से तौबा कर लेगा
रिश्तों में मिठास का संकल्प लेगा
उसी दिन ऐ भानु
तुम नव वर्ष के रूप में अवतरित होना
जिस दिन धरा से
आपसी बैर मिट जाएगा
वही दिन

नव वर्ष कहलायेगा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 579

Comment

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Comment by Sushil Sarna on January 5, 2015 at 1:31pm

आदरणीय  JAWAHAR LAL SINGH जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। आपको  नव वर्ष सपरिवार मंगलमय हो। 

Comment by Sushil Sarna on January 5, 2015 at 1:31pm

आदरणीय  ram shiromani pathak जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। आपको  नव वर्ष सपरिवार मंगलमय हो। 

Comment by Sushil Sarna on January 5, 2015 at 1:31pm

आदरणीय  शिज्जु "शकूर" जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। आपको  नव वर्ष सपरिवार मंगलमय हो। 

Comment by Sushil Sarna on January 5, 2015 at 1:30pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। आपको  नव वर्ष सपरिवार मंगलमय हो। 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 4, 2015 at 6:29pm

जिस दिन धरा से 
आपसी बैर मिट जाएगा 
वही दिन

नव वर्ष कहलायेगा

सुन्दर सन्देश देती रचना ...बधाई!

Comment by ram shiromani pathak on January 4, 2015 at 3:24pm
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय।।बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2015 at 11:12am

आदरणीय सुशील जी इस सुंदर रचना के लिये आपको हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2015 at 8:40pm

बहुत सुन्दर बात कही आदरणीय सच है -

जिस दिन धरा से
आपसी बैर मिट जाएगा
वही दिन

नव वर्ष कहलायेगा              -- हार्दिक बधाई  आदरणीय ।

Comment by Sushil Sarna on January 3, 2015 at 7:36pm

आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। आपको सपरिवार नव वर्ष मंगलमय हो। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 3, 2015 at 4:14pm

भानु
तुम महान हो
तुम मानव की भलाई के लिए जलते रहे
और मानव तुम्हें छलते रहे
जिस दिन मानव मानव के लिए जियेगा
कुकर्मों से तौबा कर लेगा
रिश्तों में मिठास का संकल्प लेगा
उसी दिन ऐ भानु
तुम नव वर्ष के रूप में अवतरित होना
जिस दिन धरा से
आपसी बैर मिट जाएगा
वही दिन

नव वर्ष कहलायेगा-------------------------सुन्दर विचार i सरना जी i

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