For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत - आने वाला नया, नया कब रह पाता है ( गिरिराज भंडारी )

नया कहूँ तो, वैसे तो हर पल होता है

नया जागता तब है जब पिछला सोता है 

पर सोचो तो नया , नये में क्या होता है

हर पल पिछला, आगे को सब दे जाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

वही गरीबी , भूख , वही है फ़टी रिदायें 

वही चीखती मायें , जलती रोज़ चितायें

वही पुराने घाव , वही है टीस पुरानी

वही ज़हर, बारुद, धमाका रह जाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

वही अक़्ल के अंधे , जिनके मन जंगी हैं

वही बांटते नफरत सारे आतंकी हैं

वही बात में शांति, होड़ है हथियारों की

स्वेत कबूतर ऐसे में कब उड़ पाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

कब तक पतझड़ झेलें, कब तक आस रखें हम

पागल बाग उजाड़े , औ मधुमास तकें हम 

खुद से लड़ के झड़ते पत्ते सिर्फ लखें हम

पत्तों का विद्रोह वृक्ष कब सह पाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

 

ऐसे में किस पल को बोलो नया कहूँ मैं

जब हर नव-पल वही पुराना दर्द सहूँ मै

कब तक भीतर-भीतर, कितना और दहूँ मै

नव वर्ष बधाई दिल मेरा न दे पाता है

 

आने वाला नया, नया कब रह पाता है

************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 936

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 9:13pm

आदरणीय जवाहर भाई , गीत की सराहना के लिये आपका दिली आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 9:12pm
आदरणीय बड़े भाई विजय निकोरे जी , गीत को आपका आशीष मिला , बहुत खुशी हुई ! सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 23, 2014 at 8:14pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय श्री गिरिराज भंडारी जी!

Comment by vijay nikore on December 23, 2014 at 3:37pm

बहुत ही  सुन्दर प्रस्तुति। शीर्षक ने ही मोह लिया। और फिर......

//कब तक पतझड़ झेलें, कब तक आस रखें हम

पागल बाग उजाड़े , औ मधुमास तकें हम 

खुद से लड़ के झड़ते पत्ते सिर्फ लखें हम

पत्तों का विद्रोह वृक्ष कब सह पाता है//  ............. कितना सच !

हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 2:31pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया । आने वाले नये साल की आपको भी बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 2:29pm

आदरणीययोगेन्द्र भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by khursheed khairadi on December 23, 2014 at 12:27pm

वही अक़्ल के अंधे , जिनके मन जंगी हैं

वही बांटते नफरत सारे आतंकी हैं

वही बात में शांति, होड़ है हथियारों की

स्वेत कबूतर ऐसे में कब उड़ पाता है

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब |सभी बंध अच्छे है |शायद नया कुछ नया लेकर आये ,इसी आस में आपको नववर्ष की शुभकामनाएं वर्तमान हालात में उपजी निराशा को आपने सबल स्वर दिया है |सादर अभिनन्दन  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 8:57am

प्रिय अनुज सोमेश , स्नेहिल सराहना के लिये बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 8:55am

आदरणीय शिज्जु भाई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका दिली शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 8:54am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , गीत आपका आशीष पा प्रफुल्लित है । स्नेहिल सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
49 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"ग़ज़ल — 2122 2122 2122 212 धन कमाया है बहुत पर सब पड़ा रह जाएगा बाद तेरे सब ज़मीं में धन दबा…"
9 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 घोर कलयुग में यही बस देखना रह जाएगा इस जहाँ में जब ख़ुदा भी नाम का रह जाएगा…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। सुधीजनो के बेहतरीन सुझाव से गजल बहुत निखर…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाइये।"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं…"
11 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service