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"रमा, सेठ रामलाल की बेटी पिछले महीने किसी के साथ भाग गई थी। कई दिन अखबारों की न्यूज भी बनी। आज उस बात को सब भूल गए हैं। रामलाल भी आराम से अपना धंधा कर रहा है और एक मेरी बेटी ने 5 साल पहले भागकर शादी की थी। आज भी लोग मेरी बेटी और मेरे परिवार को गिरी हुई नजरों से देखते हैं।"- सावित्री ने दुखी मन से कहा।

"सावित्री बहन, गरीब की बेटी और अमीर की बेटी में बहुत फर्क होता है।"- रमा ने सांत्वना देते हुए कहा।

"मौलिक और अप्रकाशित"

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Comment by विनोद खनगवाल on November 19, 2014 at 6:21pm

somesh ji, rajesh kumari ji, dr. gopal ji, giriraj ji, yograj ji or laxman ji sabhi aadrniya mahanubhao ka dil se aabhar vyakt karta hu. ye OBO me meri pahli rachna hai. aap logon ka hissa bankar muje khushi or garav mahsoos ho raha hai.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2014 at 11:30am

सुंदर कहानी रची है | एक दूसरा पहलु भी है - चाहे अमीर गरीब ही कारण हो, पर गरीब के बेटी किसी वजह से याद तो करते 

है | अमीर की बेटी तो आँखों से ओझल ही हो गई | हार्दिक  बधाई  श्री  खनगवाल जी 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 19, 2014 at 11:20am

अमीर गरीब के फर्क को सुंदरता से परिभाषित किया है भाई विनोद खनगवाल जी, बधाई स्वीकारें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 18, 2014 at 8:01pm

पैसा बहुत से ऐब ढक देता , कम से कम हमारे देश मे तो यही हो रहा है ! बधाई लघुकथा के लिये , आदरणीय ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 18, 2014 at 6:47pm

सत्य है मित्र i

को कही सके बडेन को -----


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 18, 2014 at 11:02am

बातें तो बनती हैं चाहे बेटी अमीर की हो या गरीब की किन्तु जो कुछ फ़र्क है सोमेश जी की बात से मैं भी सहमत हूँ ,कई बार अपने लोग ही उस जख्म को ताजा किये रहते हैं ..अच्छी लघु कथा बहुत बहुत बधाई 

Comment by somesh kumar on November 17, 2014 at 10:56pm

शायद ये फ़र्क इसलिए भी है की अमीर का दूसरों की ज़िन्दगी में कम दखल है जबकि गरीब अधिक घुले-मिले हैं इसलिए जख्म को कुरेदने वाले भी ज़्यादा हैं 

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