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पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ : नीरज नीर

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ ।

फुनगियों पर अँधेरा है
आसमान में पहरा है।
जवाब है जिसको देना
वो हाकिम ही बहरा है।
तमस मिटे नव विहान चाहता हूँ।

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ।

अंबर कितना पंकील है,
धरा पर लेकिन सूखा है।
दल्लों के घर दूध मलाई,
मेहनत कश पर भूखा है।
पेट भरे ससम्मान चाहता हूँ।

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ।

शिक्षा और रोटी के बदले,
धर्म ही लेकिन लेते छीन .
स्वयं ही को श्रेष्ठ बताते
बाकी सबको कहते हीन।
धर्म का ध्येय निर्वाण चाहता हूँ।

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ।

घूमते धर्म की पट्टी बांध
संवेदना से कितने दूर
बात अमन की करते लेकिन
कृत्य करते वीभत्स क्रूर
सबको समझे इंसान चाहता हूँ।

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ ।
….
नीरज नीर

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 17, 2014 at 9:29am

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ ...बहुत सुंदर लिखा आपने आदरणीय नीरज जी, हार्दिक बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 17, 2014 at 12:31am

पंख नहीं है उड़ान चाहता हूँ,
नापना गगन वितान चाहता हूँ ।
बहुत अच्छा है, आदरणीय नीरज कुमार नीर जी , बधाई।

Comment by anand murthy on October 16, 2014 at 7:02pm

bahut sundar ...bhaiya ...

pankh nahii hai udaan chahta huu...................

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 16, 2014 at 7:02pm

आपकी अभिलाषा पूर्ण हो  i

सस्नेह i

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