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पानी को तलवार से काटते क्यों हो ? /नीरज नीर

पानी को तलवार से काटते क्यों हो ?

हिन्दी हैं हम सब, हमे बांटते क्यों हो ?

चरखे पे मजहब की पूनी चढ़ा कर के ,
सूत नफरत की यहाँ काटते क्यों हो ?

हो सभी को आईना फिरते दिखाते ,
आईने से खुद मगर भागते क्यों हो ?

गर करोगे प्यार , बदले  वही पाओगे,
वास्ता मजहब का दे, मांगते क्यों हो ?

भर लिया है खूब तुमने तिजोरी तो ,
चैन से सो, रातों को जागते क्यों हो ?

दाम कौड़ियों के हो बेचते सच को
रोच परचम झूठ का छापते क्यों हो ?

धर्म और ईमान के गर मुहाफ़िज़ हो
मज़लूमों को फिर भला मारते क्यों हो ?

नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on September 14, 2014 at 7:09pm

आदरणीय भाई राम शिरोमणी पाठक जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका। 

Comment by Neeraj Neer on September 14, 2014 at 7:05pm

 Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' साहब आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by Neeraj Neer on September 14, 2014 at 7:04pm

...आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ । 

Comment by ram shiromani pathak on September 8, 2014 at 11:03am
वाह वाह वाह क्या ग़ज़ल कही आपने आदरणीय नीरज जी बहुत बहुत बधाई आपको।।। सादर
Comment by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 7, 2014 at 8:55pm

पानी को तलवार से काटते क्यों हो ?

हिन्दी हैं हम सब, हमे बांटते क्यों हो ?

सटीक बात कही है। सभी बंध बहुत सुंदर बन पड़े़ हैं। ग़ज़ल की बारीकियाँ नहीं जानता। भाव और शब्‍दों को सुंदर पिरोया है। साधुवाद। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2014 at 5:51pm

आदरणीय नीरज भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें |

Comment by Neeraj Neer on September 7, 2014 at 5:50pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी बहुत धन्यवाद। 

Comment by Neeraj Neer on September 7, 2014 at 5:49pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका । 

Comment by Neeraj Neer on September 7, 2014 at 5:48pm

आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्र जी इस उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार । टायपिंग  की गलती की ओर ध्यान दिलाने के लिए बहुत धन्यवाद  ॥ 

Comment by Neeraj Neer on September 7, 2014 at 5:46pm

डॉ विजय शंकर जी आपका हार्दिक आभार।  

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