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मैं खुद से कभी ये सिफारिश करूंगा |
तुम्हें भूलने की गुजारिश करूंगा |
आदरणीय भंडारी जी एक ग़ज़लकार का ये मतला जब मैंने देखा तो पहली पंक्ति मे शुरुवात के शब्द मै को पर मैंने सवाल किया तो उन्होंने कहा मै 1 भर का वजन दो और ग़ज़ल इसकी इजाजत देता है तो आप अब मेरी शंका को दूर करें |
आदरणीय नरेन्द्र जी आपका बहुत बहुत आभार
भाव सुन्दर हैं..तक्तीअ पर मिसरे और कसे होते तो आनद आ जाता..गुनिजन की राय पर अमल करें बहुत सुन्दर ग़ज़ल होगी.
आदरणीय नीरज भाई अच्छे भाव हैं ,अभिनन्दन |आदरणीय गिरिराज जी की इस्लाह अनुसार यदि आप मिसरों को यगण की चार आवृतियों या फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन पर बांधे तो लय का चमत्कार आप स्वयं अनुभव करेंगे |सादर
नीरज भाई
तक्तीअ तो गुनीजन जाने i पर मुझे आपकी गजल के भाव बहुत अच्छे लगे .
न पाया जमाने मेँ कुछ भी रहकर ,
अब मयकदा आजमाने मेँ क्या है ।
waah achchha hai......
आदरणीय नीरज भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल हुई है , आपको बधाइयाँ |
कुछ मिसरे बहर से भटके हुए लगा रहे हैं , अगर आपने ग़ज़ल --१२२ १२२ १२२ १२२ में कही है तो , एक बार सभी मिसरों की तक्तीअ करा के देख लीजिये |
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